पिछले दिनों संसद में जो कार्टून विवाद हुआ , उसने सोचने पर मजबूर कर दिया
कि हमारे नेता अपने साख को लेकर कितना डरे हुए हैं . एक कार्टून उनकी जमी
जमाई सत्ता हिला देने की क्षमता रखता है . इस कार्टून विवाद से यह भी देखने
को मिला कि राजनीतिक पार्टियाँ ' जाति ' की तरह बर्ताव करने लगी हैं . ये
जातिगत भावना से भर गये हैं ,राजनीति की जातिगत भावना से.... अन्ना
आन्दोलन के बाद से ही ये विशेषता देखने को मिल रही है. जिस तरह से आन्दोलन
के बाद के सत्र में सभी राजनीतिक दलों ने अन्ना आन्दोलन पर सवाल उठाये और
एक सुर में आन्दोलन की भर्त्सना की उससे जाहिर होता है कि राजनीतिक दल अपनी
साख को लेकर संशयग्रस्त हो गए हैं .ये अब कार्टून से भी डरने लगे हैं .
ऐसे समय में सारी पार्टियाँ एक नज़र आती हैं . कार्टून विवाद में पाठ्यक्रम
ही बदल दिया जायेगा. अब इन्टरनेट पर भी लगाम लगाने कि तैयारी चल रही है .
अगर अपनी साख कि इतनी ही चिंता है तो इन्हें अपना कर्म सुधारना चाहिए ताकि
जनता का भरोसा बचा रहे देश कि इस सर्वोच्च संस्था में ...संसद में...असल में हमारे नेता डर गये
हैं कि कहीं उनकी सत्ता छिन ना जाये . संसद की जिस सर्वोच्चता की बात
वे करते हैं ...वे भूल जाते हैं कि उन्होने अपने साथ राजा ,कनिमोझी
जैसों को बिठा रखा है . राजा ,कनिमोझी ,कलमाड़ी के जेल जाने से उनकी साख
को बट्टा नहीं लगता ...एक कार्टून छप गया तो सांसदों की साख में सेंध लग
गयी