शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

तुम्हारे और मेरे बीच
जो ठहर गया

वो
शब्द
'प्यार ' है

जो
मुझे
' गर्भपात ' 
सा दर्द देता है
----

रविवार, 16 सितंबर 2012

मैं खिलाफ हूँ
सत्ता के
जो हर बार मेरी आवाज
 घोंट देना जानता है

 सत्ता की प्रतिरोधक क्षमता जाती रही अब
हर तरफ स्याह नज़र आता है उसे



अगर कुछ नज़र नहीं आता
तो वह गुबार
जो फूट कर
आसमान में
पैबस्त हो जाना चाहता है

हमारी शिराओं में दौड़ता रक्त प्रवाह
जो पसीने की बूंदों को
लाल कर देता है

नहीं  आती वो सड़ांध
जो नासिका से मस्तिष्क तक
पहुच कर
बेधती है जुबान
और छलनी कर देती है फेफड़े को

धौकनी सी चलती सांसें
घुटने लगती हैं अचानक
क्योकि देख लेता है कोई सिपहसलार
मुझे आक्रामक मुद्रा में 

मैं समेट लेता हूँ
अपने शब्द
मेरे भीतर की क्रांतिकारिता
सिर्फ अकेले में व्यक्त होती है
चीखता हूँ भीतर -भीतर

और खुद को किसी भीडभाड वाली सड़क पर
गुम पाता हूँ

देखता हूँ
खुद को किसी 'तलाश है' वाले पोस्टर में
गुमशुदा  सा , गमजदा   सा

शनिवार, 25 अगस्त 2012

मैं मुक्तिकामी नही हूँ
न काशी से ...
न स्त्री देह से
और
न तुमसे ....

तुम्हारा  आलिंगन
तुम्हारी गंध
तुम्हारे शब्द

सब बांधते हैं मुझे
मैं ...इन बन्धनों को
जीना चाहती हूँ ...

मुक्तिकामी नहीं हूँ मैं         




( मेरे प्रिय कवि  को समर्पित )

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पिछले दिनों पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म रहा . असम की हिंसा को लेकर माहौल  गर्म था ही ...फिर म्यामार की हिंसा के लिए मुंबई में हुई एक सभा उद्वेलित हो गयी . इन घटनाओं ने देश को संवेदनशील बना दिया . देश के अलग-अलग  हिस्सों में  म्यामार को लेकर हुए प्रदर्शन में हिंसा हुई . जिसने देश की शांति में खलल डालने का काम किया . आखिर म्यामार को लेकर हमारा एक समुदाय इतना आक्रोशित क्यों है ? जबकि ठीक इसी वक़्त  पाकिस्तान से  हिन्दुओं का पलायन  हो रहा है . पाकिस्तान से आ रही ख़बरें वहां  के अल्पसंख्यकों के पक्ष में  नही हैं. उनका पलायन जारी है. एक तरफ म्यामार को लेकर देश में अराजकता का माहौल बन गया है . दूसरी तरफ पूर्वोत्तर वासियों ने   भयाक्रांत होकर देश के विभिन्न हिस्सों से अपने-अपने घरों का रुख कर दिया है . यह चिंता जनक स्थिति है कि हम अपने देश में ही सुरक्षित न हों. एक एस एम एस ने उनके मन को डरा दिया है. तमाम आश्वासनों के बावजूद भी अगर उनके मन में भय है तो कहीं न कहीं ये कमी है हमारी ,व्यवस्था की. हम उन्हें भरोसा नहीं दिला पाए कि वे देश के किसी भी हिस्से में हों , सुरक्षित हैं . ये दोनों घटनाएँ आधुनिक संचार व्यवस्था की देन हैं. सोशल नेटवर्किंग  साइट्स पर म्यामार को लेकर  कुछ गलत सामग्री ने  तथा असम से जुड़े   एस एम एस ने  देश के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं.  हमें याद रखना होगा कि भारत एक  धर्मनिरपेक्ष देश  है . सभी को जीवनयापन करने के समान अधिकार प्राप्त हैं. आपस में सौहार्द्र बना रहेगा तभी देश की और हमारी तरक्की संभव है .

        ऐसा नहीं कि हालात से बेखबर हूँ मैं
     पर ये भी नही , तुम सब की तरह बे- सबर (सब्र) हूँ मैं

इसलिए धैर्य बनाये रखें और अफवाहों पर ध्यान न दें.

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

[1]
इश्क में ये भी मंज़र अजीब हैं
जिसे क़त्ल किया उसी के शिकार हुए

[2]
     वक़्त , नाम और चेहरे बदल रहे हैं
    समय-समय पर मेरे खुदा बदल रहे हैं .

[3]

चाहत उल्फत  बेक़रारी वो करार
क्या-क्या रंग हैं इश्क के खेल में

 [4]
     बात निकली है तो फिर चल निकले
अब बेहतरी इसी में है कि कोई हल निकले

( सोनाली मुखर्जी और गुवाहाटी की घटना के लिए )

बुधवार, 25 जुलाई 2012

सुनो लोकतंत्र

आस्था एक ' खतरनाक ' शब्द है
जो हर लेती है  सोचने-समझने की शक्ति
और तुम कहते हो हम
संसद के प्रति आस्थावान हैं


सुनो लोकतंत्र

वे जो ' अगुआ ' बन बैठे हैं
लुटियन ज़ोन में
उनसे कह दो
कि मेरे भीतर चेतना शेष है अभी
कुछ भगत सिंह शेष है अभी
कुछ क्रांति शेष है अभी

सुनो लोकतंत्र

तुम्हारे सामने नतमस्तक हूँ मैं ..
और तुम...
फरेब - ए - नज़र हो
तुम जीवित हो
क्योकि हम चुप हैं

( लिखी जा रही कविता का एक अंश )

सोमवार, 2 जुलाई 2012

हाथों से कुछ छूट गयी सी लगती है
जिंदगी हमसे रूठ गयी सी लगती है


यूँ तो हँस लेते हैं हम भी महफ़िल में 
साँसे लेकिन  टूट गयी सी लगती हैं 


खो जाना है  एक  दिन   यूँ ही दरिया   में 
पानी पर  तकदीर लिखी सी लगती है  


छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों  में  जंजीर बंधी सी  लगती है 

बुधवार, 27 जून 2012

मिटटी सने मजबूत  हाथ 
 गढ़ते हैं  सपने

 बर्तनों  में उतर आयी है
उसके पसीने की खुशबू

मिटटी पक रही है

उसके पसीने  में
सोंधापन  है ...

मिटटी सने हाथो में
बखार है

खेतों में उतरे हैं
इन्द्रदेव

उसके आंतो में
रोटी का सोंधापन है

तभी अचानक
मिटटी सने हाथों से
 छीन ली जाती है
मिटटी
और
 थमा दी जाती है ' मौत '
पसरा है सन्नाटा

 और  तभी


' ब्रेकिंग  न्यूज़ '

शेयर  बाज़ार में उछाल
सोना संभला
अर्थव्यवस्था में तेजी

शुक्रवार, 22 जून 2012



मेरे प्रिय कवि के लिए

तुम्हारे रहस्यमयी व्यक्तित्व की तरह
तुम्हारी कविता भी
रहस्यों से लिपटी

मिलती है जैसे
तुम ही मिल गये हो
रास्ते में कहीं 
अचानक

और मैं देर तक
निहारती रहती हूँ उन्हें
कि शायद मिल जाये कोई सुराग
तुम्हे समझने का

कवि
तुम और तुम्हारी कविता
सभ्यता के हर छोर पर
मिलेगी मुझे
दफ़न होंगे कई-कई  अर्थ
उनमे
और तुममे भी

कवि
इतने उलझे शब्दों के साथ
कैसे जीते हो तुम

तुम्हारी कविता उतनी ही

मूल्यवान  हो जाती है
जब....
 उससे झर रहे
प्रकाश स्त्रोतों
को मैं पकड़ पाती हूँ 

कवि
सुना था कभी
कि  पढ़ते हुए किसी कवि को
लड़कियां  प्यार में पड़ जाती हैं .

तो क्या मैं भी ....???

बुधवार, 13 जून 2012

बेटियां

बेटियां बगावत नहीं करती

और अगर करती है तो
टूट जाते हैं सपने
पिता और माँ के
बहनों के ...

लोग ताने देते हैं

जुबान और कानो के बीच
आती हैं बातें
बेतरह
चरित्र का भूगोल
बिगड़ जाता है अचानक

मान -सम्मान को कठघरे में
खड़े करने वाली लड़की
की बहने ....
भी खड़ी कर दी जाती हैं कठघरे में

लोग हर बात पर
देखते हैं गलतियाँ
और
संदिग्ध हो जाती हैं
बहने ....

बेटियां बगावत नहीं करती
क्योकि ....
इज्ज़त की गठरी
उनका साथ नहीं छोडती
आजन्म ....

वे नाज़ुक शरीर में
मजबूत कंधे छुपाये रखती हैं
 बे-वक़्त
आये तूफान में भी
खड़ी रहती हैं
चट्टान सी

बेटियां बगावत नहीं करती
क्योकि
 उसकी कीमत
अंततः उनसे ही वसूली जाती है

रविवार, 10 जून 2012

उसकी बेवफाई का किससे  करें गिला
उसके सिवा जहान  में कोई राजदार  भी नहीं


इबादत , वफ़ा , नशा या रंजिश कोई
वो  इश्क  को जाने   क्या -क्या समझता है
हर बार वो गढ़ लिया करता है
अपने लिए

नयी नायिका

और मैं हर बार
उसे चाँद की तरह
निहारा करती हूँ

शनिवार, 9 जून 2012

जल

बीते दिनों परा लगातार बढ़ता रहा और  जल की उपलब्धता  कम होती गयी .न्यूज चैनल में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भवन तक में पानी पहुचाते हुए दिखाया गया . देश में  साफ पानी की समस्या दिनों दिन गहराती जा रही है.  कई स्थानों में लोग दूर-दराज से पानी लाकर जीवन बसर कर रहे हैं .   जमीन में निरंतर पानी का स्तर घट रहा है साथ ही जो उपलब्ध है वो भी  प्रदूषण  के कारण पीने योग्य नहीं  रह गया है.  देश की राजधानी दिल्ली से लेकर गाँव तक में स्वच्छ  पानी मिलना  मुश्किल है .  कल कारखानों के कारण भूगर्भ जल दूषित हो रहा है . इस कारण  लगभग हर घर  में पानी साफ करने की मशीन ने अपना स्थान बना लिया है .  आर ओ   से पानी साफ करने में जितना पानी हमें पीने योग्य मिलता है लगभग उतना ही पानी  बेकार हो कर नाली में बह जाता है . ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार इस तरह की मशीनों पर पाबन्दी क्यों नहीं लगाती . एक तरफ पानी को लेकर हाहाकार मचा होता है और दूसरी तरफ हम अपने पीने के पानी स्वच्छ करने में  लाखों लोगों का हक मार रहे होते  हैं . स्वच्छ जल हर मनुष्य का अधिकार  है लेकिन वो दूसरों के अधिकार कि शर्त पर न हो  .सरकार को चाहिए कि वह जल शोधन के नए तरीके  इजाद करे . जिससे पानी कि बर्बादी कम हो  और सभी को सामान रूप से पीने योग्य पानी उपलब्ध हो .
कितना भयावह होता है सच के साथ जीना ...
जिंदगी आसान हो जाती है भ्रम के बचे रहने से ... 
[1]
ऐसा नही कि सच से वाकिफ नही हूँ मैं ..
बाज़ार में मगर सच के खरीदार बहुत हैं...

[2]
 तमाम उम्र जिसे हम ख़ुदा समझते रहे ..
वक़्त आने पर वो मामूली बुत निकला ...

[3]
 सितमगर कोई और होता तो सह लेते मगर
सनम अपना ही काफ़िर निकला...

[4]
 इस समय में -
                  ईमान बचाए रखना
                  दोस्तों से गिरेबान बचाए रखना
                                                         - मुश्किल है .

शनिवार, 2 जून 2012

कठिन समय

ये कविता का कठिन समय है 
और 
कविता 
अपने कठिन समय  में
उतनी ही लिखी और पढ़ी जा रही है 
जितनी पहले हुआ करती थी .

लोगों  ने  इसे कठिन  समय 
साबित करना शुरू कर दिया है .


वे शब्दों की तरफदारी में 
व्यस्त हैं अपने 
कवितापन को वे दीमक की तरह 
चाट जायेंगे ..
हसेंगे  और कहेंगे ..
कि हमने घोषित कर दिया था पहले ही
' मरना तो तय था '

 और फिर  एक अट्टहास होगा 
समूहगान की तरह 

मगर ठीक उसी वक़्त 
कुछ लोग लड़ रहे होंगे 
कविता को बचाने के लिए 
 अस्मिता कि लड़ाई में 
शब्द दर शब्द 
अपनी अर्थवत्ता के लिए 
जूझ रहा होगा 
उस अघोषित लड़ाई से 
जो उसके बचे रहने का 
सबूत होगी इतिहास में ......

शब्दों की अर्थवत्ता बची रहेगी  
कविता अपने कठिन समय के बावजूद 
भी बची रहेगी .
 

मंगलवार, 29 मई 2012

तमाम उम्र जिसे हम खुदा समझते रहे
वक़्त आने पर वो मामूली बुत निकला ..
सितमगर कोई और होता तो सह लेते मगर
सनम अपना ही काफ़िर निकला...

शुक्रवार, 18 मई 2012

साख में सेंध

पिछले दिनों संसद में जो कार्टून विवाद  हुआ , उसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे नेता अपने साख को लेकर कितना डरे हुए हैं . एक कार्टून उनकी जमी जमाई सत्ता हिला देने की क्षमता रखता है . इस कार्टून विवाद से यह भी देखने को मिला कि राजनीतिक पार्टियाँ ' जाति ' की तरह बर्ताव करने लगी हैं . ये जातिगत भावना से भर गये हैं ,राजनीति की जातिगत भावना से....  अन्ना आन्दोलन के बाद से ही ये विशेषता देखने को मिल रही है. जिस तरह से आन्दोलन के बाद के सत्र में सभी राजनीतिक दलों ने अन्ना आन्दोलन पर सवाल उठाये और एक सुर में आन्दोलन की भर्त्सना की उससे जाहिर होता है कि राजनीतिक दल अपनी साख को लेकर संशयग्रस्त हो गए हैं .ये अब कार्टून से भी डरने लगे हैं . ऐसे समय में सारी पार्टियाँ  एक नज़र आती हैं . कार्टून विवाद में पाठ्यक्रम ही बदल दिया जायेगा. अब इन्टरनेट पर भी लगाम लगाने कि तैयारी चल रही है . अगर अपनी साख कि इतनी ही चिंता है तो इन्हें अपना कर्म सुधारना चाहिए ताकि जनता का भरोसा बचा रहे देश कि इस सर्वोच्च संस्था में ...संसद में...असल में हमारे नेता डर गये हैं कि कहीं उनकी सत्ता छिन ना जाये . संसद की जिस सर्वोच्चता की बात वे करते हैं ...वे भूल जाते हैं कि उन्होने अपने साथ राजा ,कनिमोझी जैसों को बिठा रखा है . राजा ,कनिमोझी ,कलमाड़ी के जेल जाने से उनकी साख को बट्टा नहीं लगता ...एक कार्टून छप गया तो सांसदों की साख में सेंध लग गयी

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

औरत

औरत


(1)
मैंने लिखा 'औरत '
तब जान पाया कि मेरे हाथ मे
बाज़ार मे सबसे तेज़ बिकने वाला शब्द है ...

(2) मैंने लिखा 'औरत'
जो सबसे तेज़ बिकती है
तस्वीर मे हो या समय के मजबूर हाथों में....
(3)
मैने लिखा औरत
और देखा
शब्द लोहे मे ढल रहे हैं .

(4)
मैने लिखा औरत
और जाना
वह सृष्टि की सबसे सर्जनात्मक
और संघर्षपूर्ण कृति है .
 (विमलेश त्रिपाठी की कविता -वह नहीं लिख पाया -पढने के बाद )

शनिवार, 7 जनवरी 2012

मेरे युग का मुहावरा है फ़र्क नही पड़ता

पिछले दिनो हुए तमाम दल बदल ने साबित कर दिया कि नैतिकता और शर्म राजनीति की डिक्शनरी मे नही रहे .नेताओं का स्वार्थ सर्वोपरि है. तमाम अपराधी किस्म के नेता पार्टियों की पहली पसंद बन गये हैं. अपराध और राजनीति का ताना बना जनता को भी खूब सुहाता रहा है . अन्ना के आंदोलन के बाद शायद कुछ जागरूकता जनता मे आई हो... यह चुनाव के बाद ही तय हो पाएगा. लेकिन राजनीतिक पार्टियाँ दागदार छवि वालो को अपना कर साबित कर रही है कि उनकी सोच मे कोई फ़र्क नही आया .तभी तो जेल मे बंद बाहुबलियों को भी टिकट बाँटे जा रहे हैं वो लोग जिन्हे समाज हत्यारा ,दुराचारी के नाम से पहचानती है वे भी चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसा नही की यह नया ट्रेंड है...पहले भी दबंग किस्म के लोगों का राजनीति मे रहे हैं . पर अब बात कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी है . अपराधी बन के राजनीति मे जाना आसान हो गया है अब . लोग भी शायद ऐसे उम्मीदवारों को पसंद करते हैं..तभी तो ऐसे लोग जीत जाते हैं. चुनाव आयोग को चाहिए कि ऐसे लोगों के नामांकन को रद्द कर दे ..जनता का भी फर्ज़ है कि वो ऐसे लोगों को वोट ना करे .अगर ऐसे लोग चुन कर आते हैं तो यह हमारे लिए भी शर्म की बात है. जागो जनता जागो...अभी नही तो कभी नही ....