एक और सशक्तिकरण समारोह
तालियों की गडगडाहट के बीच लंबे -चौडे भाषण
अतीत का दुःख तथा भविष्य के सपने
वर्तमान का पता नही .......
इसके [ वर्तमान ] अतिरिक्त न जाने क्या-क्या
क्या बदला हमारे बीच ,कुछ नही .......
सब पुराने ढर्रे पर ....
हाँ ,दिवस में एक नाम और जुड़ गया
मिल गए घंटों परिचर्चा के ,बहसों के ...
चाय की चुस्कियों के ...
जिनकी समस्या वही नदारद
वो जिनकी पैदावार ही इसलिए होती है
की ........वे रसोई और बिस्तर से ज्यादा न सोचें
वंश बढाये और अपने बनाये खाने की तारीफ़ सुने
और मान लें की इससे ज्यादा प्रशंसा
किसी चीज़ से नही मिल सकती
किसी भी चीज़ से नही ........
सशक्त महिलाओं की सभा समाप्त
वे लौट पड़ी .............
अगली बार फ़िर
सशक्तिकरण दिवस
सशक्त तरीके से मनाने का प्रण लेकर.