गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

कोविड-19 ने विश्व के शक्तिशाली और सुविधा सम्पन्न देशों को हताश और मजबूर कर दिया है।एक ओर जहाँ कोविड-19 दुनियाभर में अपना प्रकोप दिखा रहा है, वहीं भारत  सरकार ने अपनी अग्रिम तैयारी कर रखी है।  जो देश समय रहते चौकन्ने हो गए उनमें कम नुकसान की संभावना है। अंदाजा भी नहीं कि इस वायरस ने कितनी खामोशी से विश्व में पांव पसार लिए हैं। हम भौतिकता की अंधी दौड़ में भागे जा रहे थे। जीवन का बहुत कुछ पैसा कमाने की रेस में छूट रहा था। समय का इतना अभाव की खाने तक का वक़्त नहीं.. और आज लगता है प्रकृति ने ‘यू-टर्न’ ले लिया है। जैसे एक छोटे से वायरस ने जीवन का सार समझा दिया हो। निश्छल प्रकृति अपने दोहन से रुष्ट हो गयी हो.. पृथ्वी ,आकाश, वायु सब कह रहे हों कि अपनी सीमा तय करो। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जीवन इस तरह रुक जाएगा।
                     वैज्ञानिक प्रगति देश और समाज के लिए चाहे जितना जरूरी हो.. प्रकृति के लिए हमेशा नुकसानदायक रहा है। मानव और प्रकृति के सहसम्बन्धो को फिर से समीक्षा की आवश्यकता है।
               कोविड-19 ने एक नए विमर्श को भी जन्म दिया कि ‘धर्म छुट्टी पर है और विज्ञान ड्यूटी पर है।’ क्या वाकई ऐसा है...नहीं। यह लोकधर्म ही है जो सामुहिक चेतना के रुप में निर्बलों का सहारा बन के खड़ा है। लोग स्वतः ही गरीबों तक खाना पहुंचा रहे हैं। जो राज्य सरकारें राशन उपलब्ध कराने का दावा कर रहीं ,यह उनका दायित्व है। पर जनता का धर्म है कि वह घर रहकर वायरस के संक्रमण को रोके। विज्ञान यदि ड्यूटी पर है तो यह भी एक तरह का धर्म ही है। स्टीफन हॉकिंग ने कहा है-‘science will win because it works’ तो क्या धर्म काम नहीं कर रहा। यह वायरस इंसानों के लिए चुनौती है। निःसंदेह विज्ञान इस चुनौती को हल कर रहा। धर्म और विज्ञान में हार-जीत का मामला नहीं। दोनों ही मानव के हित और मानवता के पक्ष में खड़े हैं। डॉक्टर अपने जीवन को खतरे में डालकर भी सेवा कर रहे ये उनका धर्म है। सफाईकर्मी अपना धर्म निभा रहे। सोशल मीडिया पर घर के बाहर बैठकर खाना खाते पुलिस वालों की फोटो वायरल हो रही..क्या वो अपना धर्म नहीं निभा रहे।
संकट के क्षण में कई बार जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। कोरोना संकट के बाद जीवन पहले जैसा शायद न रह पाए। विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर नज़र बनाये हैं कि भारत जैसी घनी आबादी किस तरह इस संक्रमण से खुद को बचा पाएगी। जबकि अमेरिका जैसे सुविधा सम्पन्न राष्ट्र ने इस वायरस के आगे हाथ खड़े कर दिए हैं । चिंता की बात है कि अगर कोविड-19 ने भारत में पाँव पसारे तो अपनी कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बल पर खुद को संक्रमण से रोक पाना बहुत मुश्किल होगा। सोशल डिस्टेंसिंग भले ही लागू हो पर सामूहिकता की भावना नये सिरे से समाज में अपना स्थान बना रही है। कोरोना रोगी के ठीक होकर लौट आने के बाद उसके साथ मानवीय ढंग से पेश आना सभ्य समाज की जिम्मेदारी है। घरों में कैद लोग  आशान्वित हैं कि जल्द ही कोरोना संकट से मुक्ति की राह मिलेगी। इस आपदा के समय खुद को सकारात्मक और संवेदनशील बनाये रखने की आवश्यकता है।