शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

तुम्हारे और मेरे बीच
जो ठहर गया

वो
शब्द
'प्यार ' है

जो
मुझे
' गर्भपात ' 
सा दर्द देता है
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रविवार, 16 सितंबर 2012

मैं खिलाफ हूँ
सत्ता के
जो हर बार मेरी आवाज
 घोंट देना जानता है

 सत्ता की प्रतिरोधक क्षमता जाती रही अब
हर तरफ स्याह नज़र आता है उसे



अगर कुछ नज़र नहीं आता
तो वह गुबार
जो फूट कर
आसमान में
पैबस्त हो जाना चाहता है

हमारी शिराओं में दौड़ता रक्त प्रवाह
जो पसीने की बूंदों को
लाल कर देता है

नहीं  आती वो सड़ांध
जो नासिका से मस्तिष्क तक
पहुच कर
बेधती है जुबान
और छलनी कर देती है फेफड़े को

धौकनी सी चलती सांसें
घुटने लगती हैं अचानक
क्योकि देख लेता है कोई सिपहसलार
मुझे आक्रामक मुद्रा में 

मैं समेट लेता हूँ
अपने शब्द
मेरे भीतर की क्रांतिकारिता
सिर्फ अकेले में व्यक्त होती है
चीखता हूँ भीतर -भीतर

और खुद को किसी भीडभाड वाली सड़क पर
गुम पाता हूँ

देखता हूँ
खुद को किसी 'तलाश है' वाले पोस्टर में
गुमशुदा  सा , गमजदा   सा