बुधवार, 6 अप्रैल 2022

समीक्षा- खोया हुआ आकाश

  

'खोया हुआ आकाश' सोशल मीडिया के दौर में सम्बन्धों को नये सिरे से व्याख्यायित करता है। राघवेंद्र नारायण सिंह का यह उपन्यास व्यक्ति के चरित्र के हर पक्ष को सामने लाता है। प्रेम से लेकर चरित्रहीनता तक पहुँचने में बहुत कम फासला होता है। स्त्रियों की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में आये बदलाव ने उन्हें स्वतंत्रता  दी है।   स्त्री - पुरूष के बीच का आवरण जब हटता है तो सम्बन्धों छिछले होने का एहसास होता है। 
विकास के माध्यम से स्वयं लेखक कहलवा रहे हैं- ‘…मैं एक लेखक हूँ और मेरा कर्तव्य अपनी लेखनी के प्रति है,अपने सरोकारों के प्रति है, अपने पाठकों की निजी जिंदगी में ताक-झाँक करने की मुझे अनुमति बिल्कुल नहीं।` विकास प्रियंका के बारे में सोचते हुए  उसके दाम्पत्य जीवन, उसके सुख-दुख तक विचार करने लगता है। विकास के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह उचित है..? प्रियंका शर्मा के प्रति इतनी रुचि लेने ठीक नहीं।

 लेखक ने जितनी सहजता से सम्बन्धों का जुड़ना दिखाया है, वह आज के दौर में ही सम्भव है। सोशल मीडिया ने ऐसे सम्बन्धों को बढ़ावा देने का काम किया है। रिश्तों के खुलेपन को लेकर समाज इतना भी सहज नहीं। यह अवश्य है कि लोग किसी के अच्छे-बुरे  फैसलों को उनके निजी जीवन पर छोड़ देते हैं। दाम्पत्य जीवन से बाहर जाकर ऐसे बने रिश्तों पर समाज एक न्यायाधीश की भूमिका तो निभाता ही है। 

‘खोया हुआ आकाश’ का मुख्य पात्र लेखक है जिसके इर्द- गिर्द कथा का वितान रचा गया है। फेसबुक, व्हाट्सएप ने दूरी को कम किया है। अजनबी से भी संवाद सरल हो गया है।  लेखक के प्रति पाठकों का आकर्षित होना स्वाभाविक है। तीन मुख्य पात्रों के बीच कथा का प्रवाह आगे बढ़ता है। इस उपन्यास का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसके पात्र अपनी अभिव्यक्ति के प्रति ईमानदार हैं। सामाजिक दृष्टि से विकास, दिशा ,प्रियंका भले ही गलत दिखाई देते हों , लेकिन जीवन के यथार्थ को वे छुपाते नहीं। वे खुद के प्रति सच्चे हैं। 
यह बहस का मुद्दा हो सकता है सामाजिक मान-मर्यादा को लाँघ कर जीवन में सफल हुआ जा सकता है..? नैतिक मूल्यों का पतन  समाज में विकृत मानसिकता को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है। लेखक का खुद भी कहना है कि नायिका सामाजिक मान्यताओं की परिधि में रहकर अपनी तरह जीने का प्रयास करती है।
स्त्री-पुरूष सम्बन्धों पर बहुत सारे उपन्यास लिखे जा रहे हैं। समाज में सही-गलत का पैमाना क्या है..,कौन समाज के नियम नियंत्रित करता है.., वैवाहिक संबंधों का निर्वहन करने वालों की इच्छा का कोई महत्व है या सामाजिक दबाव में जीवन जीते जाना सही है.. ‘खोया हुआ आकाश’ से ऐसे बहुत सारे प्रश्न खड़े होते हैं। इस उपन्यास के पात्र इन प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम हैं। लेखकीय दृष्टि और पाठक की दृष्टि में फर्क हो सकता है। 
वैवाहिक संबंध का टूटना और उसकी जगह नये संबंध की तलाश स्वाभाविक है। इस उपन्यास में मध्यवर्गीय जीवन की विषमताओं को चित्रित किया गया है। लेखक राघवेंद्र नारायण सिंह ने मानवीय संवेदनाओं का बारीकी से विश्लेषण किया है।
जीवन से जुड़ी कई घटनाएं विकास के स्मृति पटल पर अंकित है।अपने पिता के जीवन के उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए विकास उनके देश प्रेम की भावना को याद करता है। अमेरिका में सफल जीवन होने के बावजूद प्रवासी बनकर रहना उन्हें स्वीकार नहीं। भारत से लगाव के कारण वे लौट तो आये।लेकिन नौकरी में हुए भेदभाव के कारण वे अस्वस्थ रहने लगे। संवेदना का यह गहन स्तर राघवेंद्र नारायण सिंह के उपन्यास में कई जगह पर व्यक्त हुआ है।
“मेरा यहाँ पर दम घुटने लगा है।मैं अपने देश वापस लौटना चाहता हूँ।मैं अपने पूर्वजों का ऋण वहीं पर रहकर उतारना चाहता हूँ।” यह महज शब्द नहीं हैं। यह जीवन का सार है।विदेश रहकर खुद को अपने पूर्वजों से दूर मानना और खुद को उनका ऋणी मानना, यह विकास के पिता की भावनात्मक को दर्शाता है। विदेश की सुविधा-सम्पन्न जिंदगी को छोड़कर अपनी जन्मभूमि की ओर लौटना एक बड़ा निर्णय है। भारत आकर , अपने लोगों के बीच रहकर, उनसे ही अपमानित होना.. इससे दुःखकर कुछ नहीं। विकास के पिता कहते हैं “यह इंडिया है, भारत है, अपना देश है।यहाँ कोई मापदंड नहीं है।, कोई पैमाना नहीं है, किसी की काबिलियत परखने का, उसको प्रोत्साहित और पुरस्कृत करने का।” वे आहत हैं कि उनसे काफी कनिष्ठ व्यक्ति, कोई विशेष योग्यता न होने के बाद भी सर्वोच्च पद पर आसीन है। उसकी योग्यता बस इतनी ही है कि वह मुख्यमंत्री का करीबी है।अमेरिका में उनकी काबिलियत से सभी वाकिफ़ थे।वहीं अपने देश में उनकी कोई पूछ नहीं।
डॉ. राघवेंद्र नारायण सिंह ने कोरोना महामारी और उसके हृदयविदारक दृश्यों को भी इस उपन्यास में अंकित किया है। शायद ही कोई बचा हो, जिसने कोरोना की भयावहता को महसूस न किया हो। अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर आ रही खबरों ने सभी को निर्विकार कर दिया था। अभी भी कोरोना के प्रभाव से लोग उबर नहीं पाए हैं। देश-विदेश में बढ़ रहे संक्रमण और मृत्यु की खबरों ने , तालाबंदी ने न केवल शिक्षा बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को भी बुरी तरह प्रभावित किया था। कोरोना ने सम्बन्धों के मायने बदल दिए.. जीवन की परिभाषा बदल दी। 

 स्त्री के  सन्दर्भ और बदली हुई मानसिकता ने अपने अस्तित्व और अस्मिता से समझौता करना छोड़ दिया है। सम्बन्धों के नये अर्थ गढ़े जा रहे हैं। जीवन मूल्य बदल रहे हैं। स्त्री-पुरूष सम्बन्धों में बिखराव आया है। यौन संबंधों की परम्परागत अवधारणा बदल रही है। स्त्री की आर्थिक स्वाधीनता ने  उसके निर्णयों को निरन्तर प्रभावित किया है। विचारहीन लम्बे सम्बन्ध को जीने के बजाय क्षणिक पर सुखकर सम्बन्ध उसे अधिक मूल्यवान प्रतीत होते हैं। प्रेम सम्बन्धों की ऊष्मा को ‘खोया हुआ आकाश’ में कई जगहों पर महसूस किया जा सकता है। विकास, दिशा के भावनात्मक लगाव की गहराई उपन्यास के अंत में परिलक्षित होती है। 
प्रियंका और दिशा विकास के लेखन से प्रभावित होकर उससे जुड़ीं थीं। लेखक और पाठक के संबंध से इतर उनके संबंध प्रगाढ़ होते गए। रोज-रोज के संवाद ने उन्हें काफी करीब कर दिया था। विकास के लेखन का जादू दिशा के व्यक्तित्व पर हावी हो रहा था। वह विकास से मिलने को उत्सुक है।  एक-दूसरे के वैचारिक सानिध्य ने उन्हें बदल दिया था। वे खुद भी इस बदलाव को महसूस कर रहे थे। विकास को कभी यह भी लगता है कि दिशा से इस अप्रत्याशित मुलाकात के पीछे  कहीं कोई पूर्वजन्म का संबंध तो नहीं। दिशा का बचपन संघर्षों में ही बीता था। जीवन के हर पड़ाव पर दिशा सुख से वंचित रही है। उसका वैवाहिक जीवन भी इन सबसे अछूता नहीं था। दिशा का विकास के प्रति प्रेम कहीं न कहीं जीवन में मृग-मरीचिका बन चुके स्नेह को पाना था।
नगरीय जीवन के भीड़-भाड़ के बावजूद व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है। अजनबियत के दौरान कहीं जरा भी स्नेह उसे मिलता है तो वह उसे पा लेना चाहता है। ‘खोया हुआ आकाश’ ऐसा ही उपन्यास है, जहाँ लेखक किसी विमर्श की बहस में नहीं जाना चाहता। लेखक जीवन की आम घटनाओं की तरह ही पात्रों को उनके निर्णय के साथ बढ़ने देता है। नैतिकता, मूल्य , विमर्श सब पाठक को अपनी दृष्टि से तय करना है। पाठक किस सिरे को लेकर आगे बढ़ता है, यह पूर्णतया उस पर निर्भर है।