रविवार, 21 अप्रैल 2013

जिन दरिन्दे लोगों को पांच साल की बच्ची में मासूमियत की बजाय स्त्री देह दिखता हो ,उन्हें नपुन्सक बना दिया जाना चाहिए . ये पेशेवर अपराधी नहीं ,समाज के बीच से निकले लोग है .दोष किस पर मढ़ा जाये ?क्या सरकार ,प्रशासन ,कानून, समाज सब इसके लिए दोषी नहीं .स्त्री सुरक्षा को लेकर कड़े नियम बनाने की आवश्यकता है .ऐसे नियम जिनका भय हो. सज़ा इतनी कड़ी हो कि वो गुनाहगारों और उन जैसों के लिए उदहारण बन जाये .ऐसे लोग जो ये समझते हैं कि स्त्री देह उनकी वासना को मिटाने के लिए है ,उन्हें यह बताया जाना जरुरी है कि देह से आगे भी एक दुनिया है .आखिर क्या वजह है इस हैवानियत की, क्यों एक स्त्री को बार-बार पुरुष के मानसिक, शारीरिक  यंत्रणा का शिकार होना पड़ता है . स्त्री बाज़ारवाद का शिकार हो रही है उसे उपभोग की वस्तु के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है .बाज़ार ने  मूल्यों को बेदखल कर दिया है .सिर्फ़ यह कह देने भर से समस्या का हल नही हो सकता .ध्यान देने की बात है कि शिक्षित वर्ग में सेक्स जहाँ स्वेछाचारिता पर निर्भर है ,वहीँ   दिल्ली में हुए ये जघन्यकृत्य करने वाले उस तबके से आते हैं जहाँ गरीबी है,जो किसी तरह अपना परिवार चलाते हैं . दामिनी प्रकरण में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसकी चेतना को उस ( बलात्कार ) कांड ने झकझोरा न हो .इस बर्बरता पूर्ण कृत्य ने पूरे मानव समाज को शर्मसार किया .. वहीं सोचने पर मजबूर किया कि कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था ,समाज-कानून व्यवस्था , आधुनिकता इन सब पर पुनर्विचार की आवश्यकता है , .मानव- मूल्यों के चुक जाने की वजह क्या है ?? .इन सवालों से हर व्यक्ति कहीं न कहीं रूबरू हुआ .ऐसा पितृसत्तात्मक समाज जो मासूम लड़कियों को सुरक्षा न दे पाए ,बदल दिए जाने की आवश्यकता है .नहीं चाहिए तुम्हारा नाम ,,नहीं चाहिए तुम्हारा बनाया मर्दवादी समाज ..हालाँकि सोशल साइट्स  ने पिछले दिनों बड़ी भूमिका निभाई है ,ऐसे किसी आन्दोलन में .ये  समाज के संवेदनशील लोगों को एकजुट कर पाने में समर्थ हुआ है ।  ऐसा नहीं कि इससे पहले ऐसी घटनाएं नहीं हुई या आगे नहीं होंगी पर इस घटना ने सबका ध्यान खींचा . देश भर में हुए छोटे -बड़े समूहों के प्रदर्शन और शोक सभाओं के माध्यम से जनता की भावना  सशक्त प्रतिरोध के रूप में दर्ज हुई  .सत्ता के नकारात्मक रुख और कानून की खामियों ने हर वर्ग को आंदोलित किया .पर ध्यान रखना होगा कि हम मात्र किसी भीड़ का हिस्सा होकर न रह जाएँ . अंशकालिक हलचल बनाने के बजाय जो सवाल उठे उसे हल किया जाना जरुरी है. समाज को आत्म-मंथन की आवश्यकता है और अपनी शक्ति का सही उपयोग करने की भी .

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