सहजै रहिबा
शनिवार, 6 अप्रैल 2013
जिस्म बेचता है कोई ईमान बेचता है
बाज़ार में बैठा कोई भगवान बेचता है
तोड़ देती है किसी को भूख इस कदर
बेबस हो कोई संतान बेचता है
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