शनिवार, 7 जनवरी 2012

मेरे युग का मुहावरा है फ़र्क नही पड़ता

पिछले दिनो हुए तमाम दल बदल ने साबित कर दिया कि नैतिकता और शर्म राजनीति की डिक्शनरी मे नही रहे .नेताओं का स्वार्थ सर्वोपरि है. तमाम अपराधी किस्म के नेता पार्टियों की पहली पसंद बन गये हैं. अपराध और राजनीति का ताना बना जनता को भी खूब सुहाता रहा है . अन्ना के आंदोलन के बाद शायद कुछ जागरूकता जनता मे आई हो... यह चुनाव के बाद ही तय हो पाएगा. लेकिन राजनीतिक पार्टियाँ दागदार छवि वालो को अपना कर साबित कर रही है कि उनकी सोच मे कोई फ़र्क नही आया .तभी तो जेल मे बंद बाहुबलियों को भी टिकट बाँटे जा रहे हैं वो लोग जिन्हे समाज हत्यारा ,दुराचारी के नाम से पहचानती है वे भी चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसा नही की यह नया ट्रेंड है...पहले भी दबंग किस्म के लोगों का राजनीति मे रहे हैं . पर अब बात कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी है . अपराधी बन के राजनीति मे जाना आसान हो गया है अब . लोग भी शायद ऐसे उम्मीदवारों को पसंद करते हैं..तभी तो ऐसे लोग जीत जाते हैं. चुनाव आयोग को चाहिए कि ऐसे लोगों के नामांकन को रद्द कर दे ..जनता का भी फर्ज़ है कि वो ऐसे लोगों को वोट ना करे .अगर ऐसे लोग चुन कर आते हैं तो यह हमारे लिए भी शर्म की बात है. जागो जनता जागो...अभी नही तो कभी नही ....