बुधवार, 12 अगस्त 2020

बिसात पर मात

यह राजनीति की बिसात पर शह और मात का खेल है। राजस्थान में ऊपर-ऊपर भले ही सब सेट नज़र आ रहा हो, अन्दर खाने में खेल खत्म नहीं हुआ। फिलहाल अशोक गहलोत भारी हैं सचिन पायलट पर। पार्टी की सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सचिन के पक्ष में फैसला दिया हो पर कद तो अशोक गहलोत का बड़ा दिख रहा। सचिन ने बड़ी चूक कर दी। जो फैसला लिया, वे उस पर टिके नहीं रह पाए। यह सामान्य नियम है कि उचित या अनुचित जब एकबार कदम आगे बढ़ा दिया तो वापसी नहीं करनी थी। लेकिन अनुभव की कमी और पर्याप्त मैनेजमेंट न होने के कारण उन्हें वापसी को बाध्य होना पड़ा। राजनीतिक महत्वाकांक्षा होना गलत नहीं । लेकिन गलत समय पर लिया गया निर्णय व्यक्ति के भविष्य को जरुर प्रभावित करता है। इस निर्णय के भी दूरगामी परिणाम नज़र आ रहे। 

     विद्रोह की शुरुआत में सचिन मजबूत नज़र आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि सचिन पायलट गहरा असर छोड़ सकते हैं । लेकिन अशोक गहलोत समय रहते स्थिति संभालने में सफल हुए। 

अपने मास्टरस्ट्रोक में असफल सचिन के पास वापसी के अलावा कोई रास्ता न था। अपने 18 सहयोगियों के साथ वे उस रास्ते चल पड़े , जिसकी मंजिल खुद उन्होंने भी निश्चित नहीं की थी। राजनीति में यह इमेच्योर निर्णय उनकी खुद की छवि को डेंट लगा गया। 

 राजस्थान में जमीनी मेहनत कर सत्ता वापसी का सिरमौर सचिन ने खुद के सिर पर सजते देखा। पर अशोक गहलोत ने केंद्रीय नेतृत्व को पहले ही अपने पक्ष में आश्वस्त कर रखा था। यह राजस्थान राजनीतिक संकट की  बड़ी वजह बना। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर जिस तरह व्यक्तिगत आक्षेप लगाए , उससे उनके मंशा जाहिर होती है। 'फॉरगेटएंड फॉरगिव' ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं।