गुरुवार, 25 मार्च 2021

धर्म / लोक

‘ इनसाइड हिंदू मॉल ‘ यह किताब अभिजीत सिंह द्वारा लिखी है। ‘ हिंदी में लिखी किताब का यह नाम क्यों ‘.. यह सवाल मन में आता है । जैसा कि किताब के शुरुआती लेखों से ही स्पष्ट है , यह युवा वर्ग को संबोधित है। आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में ‘मॉल संस्कृति’ इतनी प्रविष्ट हो चुकी है कि लेखन इससे कैसे अछूता रह सकता है। युवाओं के मन में हिंदू धर्म को लेकर अनेक सवाल उठते रहते हैं। हिंदू धर्म के प्रति भ्रामकता बढ़ती जा रही है। युवा पीढ़ी ज्वालामुखी के उस मुहाने की ओर बढ़ रही है , जहाँ एक दिन सब भस्म हो जाना है। ऐसे समय में अभिजीत की यह किताब ‘लाइटहाउस’ बनकर युवाओं का मार्ग प्रशस्त करेगी।

‘ हिंदू होना क्या है ‘…यह मूल प्रश्न है । हिंदू धर्म के सकारात्मक  पक्ष को  लेखक ने प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया है। इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये ‘समभाव’ की प्रकृति को बल देती है। भारत बहुधर्मी देश है। दूसरे के बल पर श्रेष्ठता का भाव घातक है। इस किताब में यह दर्शाया गया है कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलता है। यह बाँधता नहीं बल्कि मुक्ताकाश की अवधारणा रोपित करता है। लेखक पूर्व की कुछ घटनाओं का ज़िक्र करता है। वो बामियान की घटना हो या जैन धर्म को अल्पसंख्यक बनाये जाने की , ये संवेदनशील हिंदू को पीड़ा देने वाली बात है।  लेखक की संवेदना अपने पूर्वजों द्वारा रोपित वृक्ष की शाखाओं को कमजोर होते देख आहत है।  सम्भवतया इस किताब की प्रेरणा इन्हीं घटनाओं के बीच से मिली हो।

 

हिंदू धर्म  ‘प्रकृतिपूजक’ रहा है। वृक्ष, नदियाँ, पशु-पक्षी सभी इसके अंग हैं। भारतीय चिंतन परंपरा के द्वार सभी के लिए खुले हैं। जिसकी भी ‘लोक’ में गहरी आस्था होगी , वह हिंदू धर्म का संवाहक होगा।  अभिजीत लिखते हैं कि शिखा या जनेऊ धारण कर लेना भर धर्म नहीं है। वे उन्हीं लोक से जुड़ी बातों की चर्चा बार-बार करते हैं , जो हमें अनुवांशिक रुप में पीढियों से प्राप्त है। वे विचार हमारे रक्त प्रवाह में है। जड़ और चेतन के प्रति  जो स्नेह भाव है ,वही धर्म है। हिंदू धर्म उदारमना है। यही उसकी प्रासंगिकता का मुख्य कारण है।

 

             लेखक ने वेद की ऋचाओं से लेकर लोक में प्रचलित कथाओं को आधार बनाया है।  हमारे ऋषि-मनीषियों ने जो  लिखा है, वही मूल भावना लोक के माध्यम से व्यक्त हुई है। हिंदू धर्म का मूल ही समावेशी है। हिंदू धर्म और दर्शन शक्तिशाली विचारों का पुंज है। इस धर्म को जो भी समझने आता है , इसका होकर रह जाता है। मनुष्यता और सहनशीलता इसके मूल तत्व हैं। लेखक सचेत होकर अन्य धर्मों के प्रति तुलनात्मक नहीं होता।
लेखक का बार-बार यह आग्रह है कि यदि हिंदू धर्म में किसी तरह की विकृति आयी है तो उसमें सुधार की गुंजाइश भी है। हिंदू धर्म ने समय-समय पर खुद को परिष्कृत किया है। धर्म जीवन के सभी अंगों में समाहित है। धर्म में जब जड़ता आती है या  वह प्रतिगामी होता है तो स्वतः ही समाज से सुधार के प्रयत्न होने लगते हैं।

 

‘इनसाइड हिंदू मॉल’ उन छद्म प्रगतिशीलों को जवाब है जिन्हें हिंदू धर्म की प्रगतिशीलता नहीं दिखती। लेखक के पास लोक से जुड़ी अनेक कथायें हैं। इन कथाओं को  सबने सुन रखा होगा , पर इनसे ‘क्या ग्रहण करना है’ यह इस पुस्तक का से पता चलता है। ‘सहजता’ ही इस किताब की ‘विशिष्टता’ है।

शुरुआत के कुछ लेखों को एक ही शीर्षक के अंर्तगत रखा जा सकता था।  यह किताब  युवा पाठकों के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। यह किताब ऐसे समय में आयी है जब धर्म को युवाओं के समक्ष ‘संवाद’ की तरह प्रस्तुत किये जाने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है।