सोमवार, 13 सितंबर 2021

सोशल मीडिया के दौर में हिंदी

          भारत में 14 सितम्बर 'हिंदी दिवस' के रुप में मनाया जाता है।
हिंदी दिवस पर अनेक सरकारी आयोजन किये जाते है। विद्यालयों में हिंदी को लेकर प्रतियोगिताएं होती हैं। कई बार यह सवाल मन में आता है कि आखिर इस दिवस की सार्थकता क्या है? सरकारी आयोजनों पर होने वाले भाषण , विद्यालयों में लेखन प्रतियोगिता महज औपचारिकता मात्र नहीं हैं।  हिंदी पखवाड़ा घोषित कर कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली जाती है। हिंदी दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों की पहुँच सीमित होती है। वे ख़बर मात्र बनकर रह जाते हैं।

हिंदी से संबंधित हाल ही में एक ख़बर चर्चा में है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- बीएचयू हिंदी माध्यम में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरु करने जा रहा है। यह देश का पहला ऐसा संस्थान है , जो इंजीनियरिंग के छात्रों को हिंदी भाषा में पढ़ने का विकल्प देगा। वास्तव में ऐसे ही पहल की बहुसंख्यक हिंदी भाषी समाज को आवश्यकता है। उच्च शिक्षा में मातृभाषा में पठन-पाठन से उन विद्यार्थियों को लाभ होगा, जो योग्यता होते हुए भी अंग्रेजी भाषा में असहज होने के कारण वंचित रह जाते हैं।


सोशल मीडिया के इस प्रभावशाली दौर में हिंदी के वर्चस्व में बढ़ोतरी ही हुई है। आज के समय की बात करें तो सोशल मीडिया के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। हर न्यूज़ चैनल , पत्र-पत्रिकायें ऐप्प और वेब पोर्टल-यू ट्यूब के माध्यम से हर व्यक्ति को लक्ष्य किये हुए हैं। समाज के बदलते स्वरूप के साथ हिंदी भाषा का तादात्म्य उसे समृद्ध कर रहा है। ट्विटर के स्पेसेस और क्लब हाउस ने एक बड़ा मंच हिंदी भाषा को उपलब्ध कराया है। यह हिंदी भाषा की समृद्ध होती पहचान का प्रभाव है कि युवा होती पीढ़ी हिंदी में संवाद के लिए खुद को सहज पाती है।  भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जब कहा था 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल' तब हिंदी भाषा को स्थापित करने की बात थी। पर आज भी यह मूल मंत्र है।  हिंदी वैश्विक पटल पर अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है। भाषा से लोक-संस्कृति का गहरा जुड़ाव होता है। ट्विटर पर डॉ सुरेश पंत हैं, जो हिंदी के शब्दों की उत्पत्ति ,उसका अर्थ से लेकर मुहावरों तक का विशद ज्ञान रखते हैं। वे शब्दों के शुद्ध और व्याकरणिक दृष्टि से सही प्रयोग पर बल देते हैं।

ऑस्ट्रेलिया के इयान वुल्फोर्ड हिंदी के प्रोफेसर हैं, जो ट्विटर पर सक्रिय रुप से हिंदी भाषा में लिखते हैं और साहित्यिक चर्चाओं को विस्तार देते हैं। तमाम प्रशासनिक अधिकारी सोशल मीडिया पर हिंदी को अछूता नहीं मानते। ट्विटर पर कई सारे हैंडल हिंदी साहित्यकारों के नाम से न केवल चल रहे हैं बल्कि अच्छी संख्या में युवा वर्ग को आकर्षित कर रहे हैं। आधुनिक माने जाने वाले पटल पर हिंदी की यह उपस्थिति आशान्वित करती है।

भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रति विश्व भर में झुकाव है। विदेशी सैलानी यहाँ जीवन के गूढ़ दर्शन को समझने आते हैं। वे भी हिंदी के प्रचार- प्रसार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारतीय संस्कृति और लोक को उसकी भाषा के बिना नहीं समझा जा सकता है।

हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ रही है। भाषा जब शिक्षा, व्यापार और मनोरंजन तीनों क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम कर ले तो इससे भाषा की अन्तःशक्ति का पता चलता है। हिंदी भाषा उसी ओर अग्रसर है। अपनी आबादी के कारण भारत वैश्विक बाजार के लिए एक बड़ा ग्राहक है।  बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी विज्ञापनों के द्वारा उपभोक्ता को प्रभावित करने में लगी हैं। मोबाइल द्वारा हर घर, हर व्यक्ति तक बाज़ार की पहुंच है। हिंदी की बड़ी आबादी को लक्ष्य कर बाज़ार उन्हीं की भाषा और संस्कृति में खुद की प्रभावोत्पादकता स्थापित करने में लगा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां
अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए कहीं न कहीं हिंदी भाषा को मजबूत ही कर रही हैं।

आजकल बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं। एक सज्जन ने हिंदी कक्षा के संदर्भ में अपना अनुभव साझा किया।  हिंदी की कक्षाओं में भी अंग्रेजी के माध्यम से संवाद किया जाये तो यह अनुचित होगा। स्कूलों को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि भाषा की कक्षा में उस भाषा का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। 'हिंदी हैं हम'.. यह बात भूलनी नहीं चाहिए। किसी देश की भाषा उसका आत्मसम्मान, उसका गौरव है। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कई अखबारों ने अभियान चलाए हैं.. हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक वेबिनार आयोजित किए जा रहे हैं। आज के डिजिटल युग में कम्प्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रयोग एक बड़ी उपलब्धि है। इंटरनेट ने गाँव-कस्बों तक अपनी पकड़ बनाई है। हिंदी की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।
       

आवश्यकता है कि हिंदी दिवस मात्र औपचारिक आयोजन भर न रह जाये। इस दिन चाय-नाश्ता और गोष्ठियों से आगे बढ़कर हिंदी , शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाये। जिस तरह की पहल आई.आई.टी. बीएचयू ने की है, वह अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए मानक साबित हो। शिक्षा और रोजगार की भाषा के रुप में भी हिंदी स्थापित हो। हिंदी भाषा में सबसे ज्यादा पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित होती हैं । वर्तमान परिदृश्य में हिंदी का प्रभाव आशान्वित करने वाला है। वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन 1960 में इस उद्देश्य के साथ किया गया था कि तकनीकी शब्दावली के लिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शब्द चयन किया जाये। समय के साथ इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जितना हिंदी का प्रयोग बढ़ता जाएगा ,उतना ही देश उन्नति की ओर अग्रसर होता जायेगा।
 
                                                      डॉ. क्षमा सिंह 

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

सोशल मीडिया -अंधी दौड़

   युवा होती पीढ़ी में इंस्टाग्राम बहुत लोकप्रिय है।  उस पर चल रही रील्स ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम किस दिशा में जा रहे.. हर रोज नये तरह के पहनावे और हाव-भाव के साथ उपस्थित बच्चे...और अब तो कंटेंट के नाम पर घर के बुजुर्ग भी शामिल किए जा रहे इस प्रदर्शन में। कुछ सेकेंड की वीडियो के लाखों व्यूज.. मनोरंजन के नाम पर जो हो रहा.. वह समाज को कोई दिशा नहीं देने वाला , ये तो तय है। पैसे कमा सकते हैं व्यूज के नाम पर.. लेकिन इस युवा होती पीढ़ी के पास कुछ भी शेष नहीं होगा अपनी अगली पीढ़ी को देने के लिए।

 इंस्टाग्राम पर ही एक लड़की
कहती है.. इतने सुंदर लोग आखिर इंस्टाग्राम पर आ कहाँ से रहे..? सप्लाई कहाँ से हो रही इनकी...। 
वाकई इतने खूबसूरत लड़के-लड़कियाँ की देखते रह जाओ।

                                 टिक-टॉक बैन हुआ तो लगा थोड़ी राहत हो गयी। फेसबुक पर वीडियो का ऑप्शन है.. जिस तरह के वीडियो वहाँ देखने को उपलब्ध हैं..
पॉर्न देखने के लिए कुछ तलाशने की जरुरत ही नहीं है। पहले सिर्फ पोस्ट तक सीमित फेसबुक ने सारा दिन दिल,दिमाग को बंधक बनाए रखने के लिए वीडियो का विकल्प भी डाल दिया है।
रील्स की चकाचौंध में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। रील्स बनाने वाले को फिर भी पैसे मिल रहे.. देखने वाला सारा दिन चाहे तो बैठ कर देखता रह जाये। 
             

इन सबमें ट्विटर फिर भी बेहतर है। जहाँ खबरों और सूचनाओं का आदान-प्रदान सहजता से किया जाता है। विचारों का त्वरित प्रसारण और अब तो स्पेसेस ने ट्विटर को संवाद का मुख्य जरिया बना दिया है। 

मंगलवार, 15 जून 2021

चिराग तले अँधेरा

 राजनीति में जो भी सक्रिय है, वह कभी न कभी सत्ता में आने की आशा पाले रखता है। यह आशा जब टूटती दिखती है तो हलचल पैदा करती है। बीते दिनों जो राजनीतिक उथल-पुथल हुआ , उसे सामान्य भाषा में ‘मौकापरस्ती’ बोलते हैं। एलजेपी के पाँच सांसदों ने चिराग पासवान से किनारा कर लिया। यह कैसे हुआ कि चिराग को इसकी भनक तक न लगी। यह दर्शाता है कि वे अपनी ही पार्टी में सामंजस्य स्थापित न कर सके। रामविलास पासवान के जाने के बाद एलजेपी का भविष्य संदिग्ध दिख रहा। ऐसा नहीं कि पासवान की इकलौती पार्टी इस दायरे में है। सभी क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी प्रासंगिकता बचाये रखने के लिए महत्वपूर्ण पदों को अपने परिवार से इतर लोगों को मौका देना होगा। अन्यथा जैसे ही पार्टी सत्ता से दूर होगी या फिर पार्टी के मुखिया जीवन-विराम लेंगे, पार्टी में विद्रोह स्वाभाविक है। राजनीति का यह ‘नरेंद्र मोदी’ युग है। संभव हो या न हो पर भारतीय राजनीति में आगे का भविष्य मोदी के हाथों में ही दिख रहा। विपक्ष अधमरा हो चुका है। कांग्रेस के नेता शीर्ष नेतृत्व के भीतरमार से त्रस्त हैं। राहुल गांधी के रहते हुए युवा नेताओं का भविष्य खतरे में है। सिंधिया, जितिन प्रसाद के बाद निगाह सचिन पायलट पर टिकी है। पंजाब, राजस्थान से रह-रह कर धुँआ उठता दिख रहा , जिसे सुलझाने में कांग्रेस असक्षम है।
उधर बसपा से भी टूट की खबर आ रही है। हाल की खबरों से पता चलता है कि प्रवासी बनकर आये कुछ भाजपा विधायक टीएमसी में लौट जाने को आतुर हैं।
सत्ता से दूरी पार्टियों में बिखराव का कारण है। मौकापरस्त लोग सत्ता सम्पन्न होने को अधीर हैं।

गुरुवार, 25 मार्च 2021

धर्म / लोक

‘ इनसाइड हिंदू मॉल ‘ यह किताब अभिजीत सिंह द्वारा लिखी है। ‘ हिंदी में लिखी किताब का यह नाम क्यों ‘.. यह सवाल मन में आता है । जैसा कि किताब के शुरुआती लेखों से ही स्पष्ट है , यह युवा वर्ग को संबोधित है। आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में ‘मॉल संस्कृति’ इतनी प्रविष्ट हो चुकी है कि लेखन इससे कैसे अछूता रह सकता है। युवाओं के मन में हिंदू धर्म को लेकर अनेक सवाल उठते रहते हैं। हिंदू धर्म के प्रति भ्रामकता बढ़ती जा रही है। युवा पीढ़ी ज्वालामुखी के उस मुहाने की ओर बढ़ रही है , जहाँ एक दिन सब भस्म हो जाना है। ऐसे समय में अभिजीत की यह किताब ‘लाइटहाउस’ बनकर युवाओं का मार्ग प्रशस्त करेगी।

‘ हिंदू होना क्या है ‘…यह मूल प्रश्न है । हिंदू धर्म के सकारात्मक  पक्ष को  लेखक ने प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया है। इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये ‘समभाव’ की प्रकृति को बल देती है। भारत बहुधर्मी देश है। दूसरे के बल पर श्रेष्ठता का भाव घातक है। इस किताब में यह दर्शाया गया है कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलता है। यह बाँधता नहीं बल्कि मुक्ताकाश की अवधारणा रोपित करता है। लेखक पूर्व की कुछ घटनाओं का ज़िक्र करता है। वो बामियान की घटना हो या जैन धर्म को अल्पसंख्यक बनाये जाने की , ये संवेदनशील हिंदू को पीड़ा देने वाली बात है।  लेखक की संवेदना अपने पूर्वजों द्वारा रोपित वृक्ष की शाखाओं को कमजोर होते देख आहत है।  सम्भवतया इस किताब की प्रेरणा इन्हीं घटनाओं के बीच से मिली हो।

 

हिंदू धर्म  ‘प्रकृतिपूजक’ रहा है। वृक्ष, नदियाँ, पशु-पक्षी सभी इसके अंग हैं। भारतीय चिंतन परंपरा के द्वार सभी के लिए खुले हैं। जिसकी भी ‘लोक’ में गहरी आस्था होगी , वह हिंदू धर्म का संवाहक होगा।  अभिजीत लिखते हैं कि शिखा या जनेऊ धारण कर लेना भर धर्म नहीं है। वे उन्हीं लोक से जुड़ी बातों की चर्चा बार-बार करते हैं , जो हमें अनुवांशिक रुप में पीढियों से प्राप्त है। वे विचार हमारे रक्त प्रवाह में है। जड़ और चेतन के प्रति  जो स्नेह भाव है ,वही धर्म है। हिंदू धर्म उदारमना है। यही उसकी प्रासंगिकता का मुख्य कारण है।

 

             लेखक ने वेद की ऋचाओं से लेकर लोक में प्रचलित कथाओं को आधार बनाया है।  हमारे ऋषि-मनीषियों ने जो  लिखा है, वही मूल भावना लोक के माध्यम से व्यक्त हुई है। हिंदू धर्म का मूल ही समावेशी है। हिंदू धर्म और दर्शन शक्तिशाली विचारों का पुंज है। इस धर्म को जो भी समझने आता है , इसका होकर रह जाता है। मनुष्यता और सहनशीलता इसके मूल तत्व हैं। लेखक सचेत होकर अन्य धर्मों के प्रति तुलनात्मक नहीं होता।
लेखक का बार-बार यह आग्रह है कि यदि हिंदू धर्म में किसी तरह की विकृति आयी है तो उसमें सुधार की गुंजाइश भी है। हिंदू धर्म ने समय-समय पर खुद को परिष्कृत किया है। धर्म जीवन के सभी अंगों में समाहित है। धर्म में जब जड़ता आती है या  वह प्रतिगामी होता है तो स्वतः ही समाज से सुधार के प्रयत्न होने लगते हैं।

 

‘इनसाइड हिंदू मॉल’ उन छद्म प्रगतिशीलों को जवाब है जिन्हें हिंदू धर्म की प्रगतिशीलता नहीं दिखती। लेखक के पास लोक से जुड़ी अनेक कथायें हैं। इन कथाओं को  सबने सुन रखा होगा , पर इनसे ‘क्या ग्रहण करना है’ यह इस पुस्तक का से पता चलता है। ‘सहजता’ ही इस किताब की ‘विशिष्टता’ है।

शुरुआत के कुछ लेखों को एक ही शीर्षक के अंर्तगत रखा जा सकता था।  यह किताब  युवा पाठकों के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। यह किताब ऐसे समय में आयी है जब धर्म को युवाओं के समक्ष ‘संवाद’ की तरह प्रस्तुत किये जाने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है।