शनिवार, 25 अगस्त 2012

मैं मुक्तिकामी नही हूँ
न काशी से ...
न स्त्री देह से
और
न तुमसे ....

तुम्हारा  आलिंगन
तुम्हारी गंध
तुम्हारे शब्द

सब बांधते हैं मुझे
मैं ...इन बन्धनों को
जीना चाहती हूँ ...

मुक्तिकामी नहीं हूँ मैं         




( मेरे प्रिय कवि  को समर्पित )

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पिछले दिनों पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म रहा . असम की हिंसा को लेकर माहौल  गर्म था ही ...फिर म्यामार की हिंसा के लिए मुंबई में हुई एक सभा उद्वेलित हो गयी . इन घटनाओं ने देश को संवेदनशील बना दिया . देश के अलग-अलग  हिस्सों में  म्यामार को लेकर हुए प्रदर्शन में हिंसा हुई . जिसने देश की शांति में खलल डालने का काम किया . आखिर म्यामार को लेकर हमारा एक समुदाय इतना आक्रोशित क्यों है ? जबकि ठीक इसी वक़्त  पाकिस्तान से  हिन्दुओं का पलायन  हो रहा है . पाकिस्तान से आ रही ख़बरें वहां  के अल्पसंख्यकों के पक्ष में  नही हैं. उनका पलायन जारी है. एक तरफ म्यामार को लेकर देश में अराजकता का माहौल बन गया है . दूसरी तरफ पूर्वोत्तर वासियों ने   भयाक्रांत होकर देश के विभिन्न हिस्सों से अपने-अपने घरों का रुख कर दिया है . यह चिंता जनक स्थिति है कि हम अपने देश में ही सुरक्षित न हों. एक एस एम एस ने उनके मन को डरा दिया है. तमाम आश्वासनों के बावजूद भी अगर उनके मन में भय है तो कहीं न कहीं ये कमी है हमारी ,व्यवस्था की. हम उन्हें भरोसा नहीं दिला पाए कि वे देश के किसी भी हिस्से में हों , सुरक्षित हैं . ये दोनों घटनाएँ आधुनिक संचार व्यवस्था की देन हैं. सोशल नेटवर्किंग  साइट्स पर म्यामार को लेकर  कुछ गलत सामग्री ने  तथा असम से जुड़े   एस एम एस ने  देश के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं.  हमें याद रखना होगा कि भारत एक  धर्मनिरपेक्ष देश  है . सभी को जीवनयापन करने के समान अधिकार प्राप्त हैं. आपस में सौहार्द्र बना रहेगा तभी देश की और हमारी तरक्की संभव है .

        ऐसा नहीं कि हालात से बेखबर हूँ मैं
     पर ये भी नही , तुम सब की तरह बे- सबर (सब्र) हूँ मैं

इसलिए धैर्य बनाये रखें और अफवाहों पर ध्यान न दें.

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

[1]
इश्क में ये भी मंज़र अजीब हैं
जिसे क़त्ल किया उसी के शिकार हुए

[2]
     वक़्त , नाम और चेहरे बदल रहे हैं
    समय-समय पर मेरे खुदा बदल रहे हैं .

[3]

चाहत उल्फत  बेक़रारी वो करार
क्या-क्या रंग हैं इश्क के खेल में

 [4]
     बात निकली है तो फिर चल निकले
अब बेहतरी इसी में है कि कोई हल निकले

( सोनाली मुखर्जी और गुवाहाटी की घटना के लिए )