सोमवार, 17 अगस्त 2009

बारिश

शाम का समय है.काले घनेरे बादल छाए हुए हैं.घर में इडली बनने की तैयारी है.माँ ने मुझे भी रसोई में बुला लिया.इन बादलों को देख के बड़ा सुकून मिल रहा है कि शायद आज बारिश हो जाए .माँ ने तो कह भी दिया कि पानी बरस जाए तो इडली खाने का मज़ा और बढ़ जाए .मुझे हँसी आ गई .बेचारे किसानो कि तो भगवान सुन नही रहे हमारी क्या सुनेंगे .जहा पूरे देश के अन्न का सवाल है ,वहा कोई सुनवाई नही तो क्या हमारे एक वक्त के खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए भगवान कोई दया दृष्टि दिखायेंगे .एक नज़र मैंने आसमान कि तरफ़ देखा ।मुझे बादलों की बेबसी पर तरस आ रहा था .मैंने सोचा चलो बरसात के मौसम में बारिश ना सही आंखों के सुकून के लिए देखने को बादल तो हैं.

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

अखबार पढ़ते हुए नज़र अचानक एक वैवाहिक विज्ञापन पर अटक गयी .एक ४७ वर्षीय विकलांग पुरूष ने स्वयं के विवाह के लिए विज्ञापन दिया था.........आवश्यकता है-सुंदर ,सुशील वधु की परन्तु विकलांगता स्वीकार्य नही.
मन में कई अनुत्तरित प्रश्न क्रोंध गए ........