गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

संसद की गरिमा और सर्वोच्चता की बात करने वाले माननीयों को 2G के आरोपी( कनिमोझी ) को राज्य-सभा में अपने बगल में बैठाने में शर्म नही आती .....उन्हें तब भी शर्म नही आती जब उनका एक साथी ( धनञ्जय सिंह ) हत्या के आरोप में जेल भेज दिया जाये और एक पहले से ही ( सुरेश कलमाड़ी ) भ्रस्टाचार के आरोप में जेल में हो .....लेकिन जब जनता अपने हक के लिए आन्दोलन करती है और संसद पर दबाव बनाती है ....तो संसद की गरिमा इन्हें खतरे में दिखाई देती है ..... 
संसद ने साबित कर दिया है कि लोकतंत्र मे लोक को अनदेखा नही किया जा सकता ..यह अन्ना के आंदोलन का दबाव ही है कि सत्र 3 दिन बढ़ा दिया गया ...लोक सभा और राज्य सभा 12 बजे रात तक चल रही है . यह अन्ना के विरोधियों को जवाब है संसद द्वारा ....

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

रुपया गिर रहा है ,आर्थिक विकास दर गिर रही है ,प्रधानमंत्री -राष्ट्रपति पद की गरिमा गिर रही है ( उदास होने की जरुरत नही ) कुछ चीज़ें बढ़ी भी हैं महंगाई ,भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी ....गिरने और उठने इस क्रम से ही तो हमारे जीवन का बैलेंस बना हुआ है . अब इन सबके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए हमें...

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

700   करोड़   के    पार्क     के   बजाय  एक अदद बिजलीघर या कारखाना भी लगाया जा सकता था . पार्क  से दलितों का भला होने से  रहा .हाँ पार्क  में घुमने से  अभिजात्यपन महसूस   किया जा    सकता    है    . यह खुद को स्थापित करने  की होड़ है या   भावी     पीढ़ी   के  प्रति   अविश्वास या   अपने किये गए कार्यों   के   प्रति   संदेह ??? 

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

ग़रीब

दुनिया के मजदूरों एक हो कहने वाले 
मार्क्स 
अब तनी हुई मुट्ठियाँ ढूंढते रह जायेंगे 
ये सरकार है भईया...
ये गरीबों को भी 
अब अमीर कहलावायेंगे...

सरकार ने गरीबी की परिभाषा बदल डाली है 
बत्तीस रूपये कमाने वाले की अब हर रोज दिवाली है 
गरीबों की तकदीर एक दिन इतनी बदल जाएगी 
सरकार इनका खाता स्विस बैंक में खुलवाएगी

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

आम आदमी

दिख जाता है हर गली हर नुक्कड़ पर 
चेहरे की बेबसी छुपाये ....
आम  आदमी  
कितना निरीह 
जीवन के थपेड़े  सहता हुआ 
खुद को घसीटता
आम आदमी  ...
ता-उम्र  टूटता
जुड़ता हुआ .....
अदम्य जिजीविषा लिए
आम आदमी .

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

sapne

दरक   रहा है भीतर कुछ
बार-बार ....लगातार 
बार -बार वह खुद को तोड़ती 
जोड़ने में लगी है, सपने
दूसरों के ...
अपनी बारी के इंतजार में 
कभी तो पूरे होंगे , सपने 
जो देखे थे बचपन से ....
जीवन के गणित में  उलझी ...
बुनते हुए सपने .....
अनजान है इस बात से कि 
उसकी परिणति 
दूसरों  के सपने पूरे होते 
देख कर खुश होने में है .

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

कुछ लोग  विचार  बेचते हैं 
.लोग झंडो तले खड़े हैं विचार लिए
विविध रंगों   के झंडे 
विचार  रंगों   में बदल रहे  हैं 

 
 

शुक्रवार, 27 मई 2011

उपजाऊ जमीन के बदले विकास नही चाहिए 
 अन्नदाता के बदले करदाता नही चाहिए 
बखार के बदले  माल नही चाहिए (भट्टा पारसौल, सिंगुर,नंदीग्राम  के सन्दर्भ में )

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011