दरक रहा है भीतर कुछ
बार-बार ....लगातार
बार -बार वह खुद को तोड़ती
जोड़ने में लगी है, सपने
दूसरों के ...
अपनी बारी के इंतजार में
कभी तो पूरे होंगे , सपने
जो देखे थे बचपन से ....
जीवन के गणित में उलझी ...
बुनते हुए सपने .....
अनजान है इस बात से कि
उसकी परिणति
दूसरों के सपने पूरे होते
देख कर खुश होने में है .
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