रविवार, 26 जुलाई 2009
बुधवार, 22 जुलाई 2009
विरासत
क्या यही बच्चो में विरासत बाटेंगे
पीने को पानी ,न होगा खाने को निवाला
सूरज की तपिश से नदिया हो जाएँगी नाला
धरती के पाँव में फटी होगी बेवाई
बंजर होंगे खेत ,न होगी बुवाई
रेत के समंदर और धूप के थपेडे होंगे
आगे जाके बच्चो को फास्टफूड ही लेने होंगे
पशु-पक्षियों से वीरान हो जायेगी धरती
जितनी ही आमद होगी उतनी ही बढेगी कड़की
सोमवार, 20 जुलाई 2009
लेखन के शुरुआती दौर की अपरिपक्व रचना
आज-कल के लड़को की ख्वाहिश यही ...
कि बाइक पर बैठेगी लड़की वही
जिसने पहनी होगी जींस और शार्ट स्कर्ट
वो बन जाएगी लव इनका फर्स्ट ।
कितनी बदल जायेगी ये धारणा तब
आएगी घर में अर्धांगिनी जब
वही लड़के जिन्हें चाह थी
जींस और शार्ट स्कर्ट की
करने लगेंगे बातें अब लज्जा और फ़र्ज़ की...
चाहेंगे की मेरे सिवा इसने ना चाहा हो
किसी और को
भले शादी के पहले वो घुमाते रहे हों किसी और को ।
शनिवार, 18 जुलाई 2009
बुधवार, 15 जुलाई 2009
दहेज़
रह गई दिल की तमन्नाएं/ दबी ही एक कोने में ,
बात शादी की थी /नही कोई ऐसी-वैसी
हाय ! ये समाज की विडम्बना है कैसी ,
दहेज़ के दावानल ने मुझे भी जलाया
पाकर मुझे अकेले में/ मेरी सास ने समझाया
अगर नही लाओगी/ रुपये लाख-दो लाख
तुम्हारा शरीर जल के हो जाएगा राख ...
सामर्थ्य था मेरे पिता में जितना/ उन्होंने दिया
बेच कर घर-बार अपना / मेरे घर को भर दिया
पर भाग्य को था शायद कुछ और ही मंजूर
मैंने ख़ुद को कर दिया आग के हवाले
अब समाज चाहे जितने लगाये नारे
कहा प्रभु से ....
अब न मानव बनाना
यदि दिया मानव जीवन तो
किसी गरीब की बेटी न बनाना .
मंगलवार, 14 जुलाई 2009
क्रांति
बेजुबाँ होना सार्थक है /बोलने की अपेक्षा
बोलने का अर्थ है 'क्रांति'
जो किसी को स्वीकार्य नही[न व्यवस्था को ,न हमें]
रगों में ठंडे खून का रिसाव है
बोलना,सोचना,विचारना /सब एक चौराहे पर आकर रुक जाते हैं ....
उस बैल की तरह जो क्षमता से ज्यादा बोझ लादने के कारण
रास्तेमें ही दम तोड़ देता है ।
उत्तेजना शांत हो चुकी है साहस मिट चुका है
ग़लत पर सभी की 'मुहर' है
यथा यह होना ही था ।
कदम-ताल करते हुए यहाँ सब एक हैं .
ये वो लोग हैं जिनके पूर्वजों ने कभी क्रांति की थी
जिनमे विरोध का साहस था
ये बातें अब व्यर्थ हैं
सब बुरा देख तथा सुन सकते हैं
पर गाँधी के एक बंदर की तरह बोल नही सकते
क्यों की ..........
बेजुबाँ होना सार्थक है /बोलने की अपेक्षा
बोलने का अर्थ है क्रांति .
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
विदा
हाँ वहीँ....
जहाँ हम मिले थे
पहली बार
इस तरह
की सदियों से मिलते रहे हों ।
इस तरह
सकुचाये से की ...
छुईमुई भी सहम जाए
आँखों में शर्म का झीना परदा लगाये
साथ न जाने कितने ही सुखद पल
और एहसास लिए हम
लम्हों में सदियों का साथ लिए हम
विदा हो गए .......
सदा के लिए ...........