मंगलवार, 14 जुलाई 2009

क्रांति

बेजुबाँ होना सार्थक है /बोलने की अपेक्षा

बोलने का अर्थ है 'क्रांति'

जो किसी को स्वीकार्य नही[न व्यवस्था को ,न हमें]

रगों में ठंडे खून का रिसाव है

बोलना,सोचना,विचारना /सब एक चौराहे पर आकर रुक जाते हैं ....

उस बैल की तरह जो क्षमता से ज्यादा बोझ लादने के कारण

रास्तेमें ही दम तोड़ देता है ।

उत्तेजना शांत हो चुकी है साहस मिट चुका है

ग़लत पर सभी की 'मुहर' है

यथा यह होना ही था ।

कदम-ताल करते हुए यहाँ सब एक हैं .

ये वो लोग हैं जिनके पूर्वजों ने कभी क्रांति की थी

जिनमे विरोध का साहस था

ये बातें अब व्यर्थ हैं

सब बुरा देख तथा सुन सकते हैं

पर गाँधी के एक बंदर की तरह बोल नही सकते

क्यों की ..........

बेजुबाँ होना सार्थक है /बोलने की अपेक्षा

बोलने का अर्थ है क्रांति .

15 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

क्षमा करना, क्षमा, आज बोलना ज़रूरी है क्यों कि क्रांति लाना ज़रूरी है!!

Yogendramani ने कहा…

आजकल आम आदमी की यह सोच हो गई है कि चुप रहो व्यर्थ ही काहे के लफडे में पडा जाऐ। शायद इसी का फायदा कुच लोग उठाते हैं और मनमानी करते हैं। यदि जीवन को सार्थक बनाना है तो बोलना ही पडेगा वर्ना आदमी और जानवर में फर्क ही कहाँ रह जाऐगा....? अच्छा लिखा है ......!

श्यामल सुमन ने कहा…

बहुत अच्छे भाव की रचना। वाह। किसी ने कहा भी है कि-

ऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है खामोश रहो।
या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो।।

कभी मैंने भी लिखा था कि-

मरने से पहले मरते सौ बार हम जहाँ में।
चाहत बिना भी सच का पड़ता गला दबाना।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

प्रकाश गोविंद ने कहा…

बहुत ही सार्थक रचना !

कविता मानवीय मूल्य का
सहज विमर्श प्रस्तुत करने के साथ ही
हमें अपने यथार्थ के प्रति नए सिरे से
सोचने को विवश करती है !

अत्यंत प्रभावित हुआ आपकी लेखनी से

दिल से ढेरों आशीष / शुभकामनायें

आज की आवाज

प्रकाश गोविंद ने कहा…

कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !

तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स

shama ने कहा…

Swagat hai sakaratmak krantee k..!

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डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

सत्य है

kshama ने कहा…

dhanyawad sabhi ka...hamesha aise hi utsaahvardhan karte rahen.

अर्कजेश ने कहा…

स्वागत !
दुनिया में खतरा बुराई की ताकत के कारण नहीं, बल्कि अच्छाई की साहसहीनता के कारण है ।

हमारा बोलना और चुप रहना भी सिर्फ़ तात्कालिक नफ़ा नुकसान तक सीमित रह गई है ।

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

jiski marji bbolo,jiski marji naa bolo. ham bolega to bolo ge ki bolta hai.narayan narayan

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

यथार्थ के कसैलेपन को अभिव्यक्त करती बेहतर शुरूआत...

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

मत दुखी दिखो मत दुखी रहो , मत पल पल का अवसान करो।
जो जीवित पल हैं पनको लेकर , नित नित नूतन अभियान करो।
Dr.R.Ramkumar '
http://anubhutiyanabhivyaktiyan.blogspot.com

संदीप ने कहा…

उत्तेजना शांत हो चुकी है साहस मिट चुका है...


लेकिन इन्‍हीं के बीच ऐसे लोग भी हैं जिनका साहस अभी मिटा नहीं, हर गलत चीज पर मुहर नहीं लगाते हैं, वे भी बेचैन हैं, क्‍योंकि उम्‍मीद एक जिन्‍दा शब्‍द है...