शुक्रवार, 22 जून 2012



मेरे प्रिय कवि के लिए

तुम्हारे रहस्यमयी व्यक्तित्व की तरह
तुम्हारी कविता भी
रहस्यों से लिपटी

मिलती है जैसे
तुम ही मिल गये हो
रास्ते में कहीं 
अचानक

और मैं देर तक
निहारती रहती हूँ उन्हें
कि शायद मिल जाये कोई सुराग
तुम्हे समझने का

कवि
तुम और तुम्हारी कविता
सभ्यता के हर छोर पर
मिलेगी मुझे
दफ़न होंगे कई-कई  अर्थ
उनमे
और तुममे भी

कवि
इतने उलझे शब्दों के साथ
कैसे जीते हो तुम

तुम्हारी कविता उतनी ही

मूल्यवान  हो जाती है
जब....
 उससे झर रहे
प्रकाश स्त्रोतों
को मैं पकड़ पाती हूँ 

कवि
सुना था कभी
कि  पढ़ते हुए किसी कवि को
लड़कियां  प्यार में पड़ जाती हैं .

तो क्या मैं भी ....???

4 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

आपकी कविता में आपका सीधा सहज भाव ईमानदारी से अभिव्यक्त हुआ है.

kshama ने कहा…

धन्यवाद् सुलभ जी

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता ...सहज रूप से भाव आये है . बधाई स्वीकार करे और आपका आभार !
कृपया मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है . आईये और अपनी बहुमूल्य राय से हमें अनुग्रहित करे.

कविताओ के मन से

कहानियो के मन से

बस यूँ ही

kshama ने कहा…

आभार विजय जी