मेरे प्रिय कवि के लिए
तुम्हारे रहस्यमयी व्यक्तित्व की तरह
तुम्हारी कविता भी
रहस्यों से लिपटी
मिलती है जैसे
तुम ही मिल गये हो
रास्ते में कहीं
अचानक
और मैं देर तक
निहारती रहती हूँ उन्हें
कि शायद मिल जाये कोई सुराग
तुम्हे समझने का
कवि
तुम और तुम्हारी कविता
सभ्यता के हर छोर पर
मिलेगी मुझे
दफ़न होंगे कई-कई अर्थ
उनमे
और तुममे भी
कवि
इतने उलझे शब्दों के साथ
कैसे जीते हो तुम
तुम्हारी कविता उतनी ही
मूल्यवान हो जाती है
जब....
उससे झर रहे
प्रकाश स्त्रोतों
को मैं पकड़ पाती हूँ
कवि
सुना था कभी
कि पढ़ते हुए किसी कवि को
लड़कियां प्यार में पड़ जाती हैं .
तो क्या मैं भी ....???
4 टिप्पणियां:
आपकी कविता में आपका सीधा सहज भाव ईमानदारी से अभिव्यक्त हुआ है.
धन्यवाद् सुलभ जी
बहुत ही सुन्दर कविता ...सहज रूप से भाव आये है . बधाई स्वीकार करे और आपका आभार !
कृपया मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है . आईये और अपनी बहुमूल्य राय से हमें अनुग्रहित करे.
कविताओ के मन से
कहानियो के मन से
बस यूँ ही
आभार विजय जी
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