हाथों से कुछ छूट गयी सी लगती है
जिंदगी हमसे रूठ गयी सी लगती है
यूँ तो हँस लेते हैं हम भी महफ़िल में
साँसे लेकिन टूट गयी सी लगती हैं
खो जाना है एक दिन यूँ ही दरिया में
पानी पर तकदीर लिखी सी लगती है
छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों में जंजीर बंधी सी लगती है
जिंदगी हमसे रूठ गयी सी लगती है
यूँ तो हँस लेते हैं हम भी महफ़िल में
साँसे लेकिन टूट गयी सी लगती हैं
खो जाना है एक दिन यूँ ही दरिया में
पानी पर तकदीर लिखी सी लगती है
छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों में जंजीर बंधी सी लगती है
3 टिप्पणियां:
चिट्ठाचर्चा से पहुँचा, शुक्ल जी का आभार।
प्रसन्न मन!
बहुत सुन्दर..............
अनु
छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों में जंजीर बंधी सी लगती है ...
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है .... सच के करीब से लिखा हुवा ..
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