सोमवार, 2 जुलाई 2012

हाथों से कुछ छूट गयी सी लगती है
जिंदगी हमसे रूठ गयी सी लगती है


यूँ तो हँस लेते हैं हम भी महफ़िल में 
साँसे लेकिन  टूट गयी सी लगती हैं 


खो जाना है  एक  दिन   यूँ ही दरिया   में 
पानी पर  तकदीर लिखी सी लगती है  


छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों  में  जंजीर बंधी सी  लगती है 

3 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

चिट्ठाचर्चा से पहुँचा, शुक्ल जी का आभार।
प्रसन्न मन!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर..............

अनु

दिगम्बर नासवा ने कहा…

छू लेते हम भी आसमान एक दिन
पर पावों में जंजीर बंधी सी लगती है ...

बहुत खूब ... लाजवाब शेर है .... सच के करीब से लिखा हुवा ..