गुरुवार, 29 दिसंबर 2011
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
रविवार, 16 अक्टूबर 2011
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011
ग़रीब
दुनिया के मजदूरों एक हो कहने वाले
मार्क्स
अब तनी हुई मुट्ठियाँ ढूंढते रह जायेंगे
ये सरकार है भईया...
ये गरीबों को भी
अब अमीर कहलावायेंगे...
सरकार ने गरीबी की परिभाषा बदल डाली है
बत्तीस रूपये कमाने वाले की अब हर रोज दिवाली है
गरीबों की तकदीर एक दिन इतनी बदल जाएगी
सरकार इनका खाता स्विस बैंक में खुलवाएगी
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011
आम आदमी
दिख जाता है हर गली हर नुक्कड़ पर
चेहरे की बेबसी छुपाये ....
आम आदमी
कितना निरीह
जीवन के थपेड़े सहता हुआ
खुद को घसीटता
आम आदमी ...
ता-उम्र टूटता
जुड़ता हुआ .....
अदम्य जिजीविषा लिए
आम आदमी .
ता-उम्र टूटता
जुड़ता हुआ .....
अदम्य जिजीविषा लिए
आम आदमी .
गुरुवार, 29 सितंबर 2011
sapne
दरक रहा है भीतर कुछ
बार-बार ....लगातार
बार -बार वह खुद को तोड़ती
जोड़ने में लगी है, सपने
दूसरों के ...
अपनी बारी के इंतजार में
कभी तो पूरे होंगे , सपने
जो देखे थे बचपन से ....
जीवन के गणित में उलझी ...
बुनते हुए सपने .....
अनजान है इस बात से कि
उसकी परिणति
दूसरों के सपने पूरे होते
देख कर खुश होने में है .
शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
शुक्रवार, 27 मई 2011
सदस्यता लें
संदेश (Atom)