बुधवार, 27 जून 2012

मिटटी सने मजबूत  हाथ 
 गढ़ते हैं  सपने

 बर्तनों  में उतर आयी है
उसके पसीने की खुशबू

मिटटी पक रही है

उसके पसीने  में
सोंधापन  है ...

मिटटी सने हाथो में
बखार है

खेतों में उतरे हैं
इन्द्रदेव

उसके आंतो में
रोटी का सोंधापन है

तभी अचानक
मिटटी सने हाथों से
 छीन ली जाती है
मिटटी
और
 थमा दी जाती है ' मौत '
पसरा है सन्नाटा

 और  तभी


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5 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...........

गहन रचना....

अनु

nayee dunia ने कहा…

man ko chhu lene wali rachna....

सदा ने कहा…

अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत गहन और सुन्दर प्रस्तुति...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर !