बुधवार, 27 जून 2012

मिटटी सने मजबूत  हाथ 
 गढ़ते हैं  सपने

 बर्तनों  में उतर आयी है
उसके पसीने की खुशबू

मिटटी पक रही है

उसके पसीने  में
सोंधापन  है ...

मिटटी सने हाथो में
बखार है

खेतों में उतरे हैं
इन्द्रदेव

उसके आंतो में
रोटी का सोंधापन है

तभी अचानक
मिटटी सने हाथों से
 छीन ली जाती है
मिटटी
और
 थमा दी जाती है ' मौत '
पसरा है सन्नाटा

 और  तभी


' ब्रेकिंग  न्यूज़ '

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सोना संभला
अर्थव्यवस्था में तेजी

शुक्रवार, 22 जून 2012



मेरे प्रिय कवि के लिए

तुम्हारे रहस्यमयी व्यक्तित्व की तरह
तुम्हारी कविता भी
रहस्यों से लिपटी

मिलती है जैसे
तुम ही मिल गये हो
रास्ते में कहीं 
अचानक

और मैं देर तक
निहारती रहती हूँ उन्हें
कि शायद मिल जाये कोई सुराग
तुम्हे समझने का

कवि
तुम और तुम्हारी कविता
सभ्यता के हर छोर पर
मिलेगी मुझे
दफ़न होंगे कई-कई  अर्थ
उनमे
और तुममे भी

कवि
इतने उलझे शब्दों के साथ
कैसे जीते हो तुम

तुम्हारी कविता उतनी ही

मूल्यवान  हो जाती है
जब....
 उससे झर रहे
प्रकाश स्त्रोतों
को मैं पकड़ पाती हूँ 

कवि
सुना था कभी
कि  पढ़ते हुए किसी कवि को
लड़कियां  प्यार में पड़ जाती हैं .

तो क्या मैं भी ....???

बुधवार, 13 जून 2012

बेटियां

बेटियां बगावत नहीं करती

और अगर करती है तो
टूट जाते हैं सपने
पिता और माँ के
बहनों के ...

लोग ताने देते हैं

जुबान और कानो के बीच
आती हैं बातें
बेतरह
चरित्र का भूगोल
बिगड़ जाता है अचानक

मान -सम्मान को कठघरे में
खड़े करने वाली लड़की
की बहने ....
भी खड़ी कर दी जाती हैं कठघरे में

लोग हर बात पर
देखते हैं गलतियाँ
और
संदिग्ध हो जाती हैं
बहने ....

बेटियां बगावत नहीं करती
क्योकि ....
इज्ज़त की गठरी
उनका साथ नहीं छोडती
आजन्म ....

वे नाज़ुक शरीर में
मजबूत कंधे छुपाये रखती हैं
 बे-वक़्त
आये तूफान में भी
खड़ी रहती हैं
चट्टान सी

बेटियां बगावत नहीं करती
क्योकि
 उसकी कीमत
अंततः उनसे ही वसूली जाती है

रविवार, 10 जून 2012

उसकी बेवफाई का किससे  करें गिला
उसके सिवा जहान  में कोई राजदार  भी नहीं


इबादत , वफ़ा , नशा या रंजिश कोई
वो  इश्क  को जाने   क्या -क्या समझता है
हर बार वो गढ़ लिया करता है
अपने लिए

नयी नायिका

और मैं हर बार
उसे चाँद की तरह
निहारा करती हूँ

शनिवार, 9 जून 2012

जल

बीते दिनों परा लगातार बढ़ता रहा और  जल की उपलब्धता  कम होती गयी .न्यूज चैनल में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भवन तक में पानी पहुचाते हुए दिखाया गया . देश में  साफ पानी की समस्या दिनों दिन गहराती जा रही है.  कई स्थानों में लोग दूर-दराज से पानी लाकर जीवन बसर कर रहे हैं .   जमीन में निरंतर पानी का स्तर घट रहा है साथ ही जो उपलब्ध है वो भी  प्रदूषण  के कारण पीने योग्य नहीं  रह गया है.  देश की राजधानी दिल्ली से लेकर गाँव तक में स्वच्छ  पानी मिलना  मुश्किल है .  कल कारखानों के कारण भूगर्भ जल दूषित हो रहा है . इस कारण  लगभग हर घर  में पानी साफ करने की मशीन ने अपना स्थान बना लिया है .  आर ओ   से पानी साफ करने में जितना पानी हमें पीने योग्य मिलता है लगभग उतना ही पानी  बेकार हो कर नाली में बह जाता है . ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार इस तरह की मशीनों पर पाबन्दी क्यों नहीं लगाती . एक तरफ पानी को लेकर हाहाकार मचा होता है और दूसरी तरफ हम अपने पीने के पानी स्वच्छ करने में  लाखों लोगों का हक मार रहे होते  हैं . स्वच्छ जल हर मनुष्य का अधिकार  है लेकिन वो दूसरों के अधिकार कि शर्त पर न हो  .सरकार को चाहिए कि वह जल शोधन के नए तरीके  इजाद करे . जिससे पानी कि बर्बादी कम हो  और सभी को सामान रूप से पीने योग्य पानी उपलब्ध हो .
कितना भयावह होता है सच के साथ जीना ...
जिंदगी आसान हो जाती है भ्रम के बचे रहने से ... 
[1]
ऐसा नही कि सच से वाकिफ नही हूँ मैं ..
बाज़ार में मगर सच के खरीदार बहुत हैं...

[2]
 तमाम उम्र जिसे हम ख़ुदा समझते रहे ..
वक़्त आने पर वो मामूली बुत निकला ...

[3]
 सितमगर कोई और होता तो सह लेते मगर
सनम अपना ही काफ़िर निकला...

[4]
 इस समय में -
                  ईमान बचाए रखना
                  दोस्तों से गिरेबान बचाए रखना
                                                         - मुश्किल है .

शनिवार, 2 जून 2012

कठिन समय

ये कविता का कठिन समय है 
और 
कविता 
अपने कठिन समय  में
उतनी ही लिखी और पढ़ी जा रही है 
जितनी पहले हुआ करती थी .

लोगों  ने  इसे कठिन  समय 
साबित करना शुरू कर दिया है .


वे शब्दों की तरफदारी में 
व्यस्त हैं अपने 
कवितापन को वे दीमक की तरह 
चाट जायेंगे ..
हसेंगे  और कहेंगे ..
कि हमने घोषित कर दिया था पहले ही
' मरना तो तय था '

 और फिर  एक अट्टहास होगा 
समूहगान की तरह 

मगर ठीक उसी वक़्त 
कुछ लोग लड़ रहे होंगे 
कविता को बचाने के लिए 
 अस्मिता कि लड़ाई में 
शब्द दर शब्द 
अपनी अर्थवत्ता के लिए 
जूझ रहा होगा 
उस अघोषित लड़ाई से 
जो उसके बचे रहने का 
सबूत होगी इतिहास में ......

शब्दों की अर्थवत्ता बची रहेगी  
कविता अपने कठिन समय के बावजूद 
भी बची रहेगी .