शनिवार, 27 जून 2009

साथ

मैं और तुम किसी नदी के दो किनारे

जो मिल के भी नही मिलते

जी लेते हैं एक-दुसरे को देख कर

इस एहसास के साथ की हम दोनों साथ हैं

साथ हैं बस साथ होने के लिए

अपने-अपने टूटे सपनों को आंखों में लिए

फ़िर एक नया सपना देखते हैं

टूट जाने के लिए.

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