बुधवार, 10 जून 2009

आज़ादी

क्या हैं इस आज़ादी के मायने

घर की दहलीज़ बस

उसके अंदर ही है सीमा तुम्हारी

वहां तक जितनी आज़ादी चाहिए

हासिल है तुम्हे

क्या समाज कभी यह समझ पायेगा

उसके बाहर भी है दुनिया हमारी

पर समाज क्या ? भय का नाम है समाज

यह बंधन तो हमारे अपनों ने दिए हैं

वे जो हैं हमारे करीब या कहूँ परिवार

जो स्त्री के विविध नामो में बसे हैं आस-पास

जिनके लिए आज़ादी बस रसोई में कुछ भी
बनाने का नाम है.

1 टिप्पणी:

रोशन प्रेमरोगी ने कहा…

hello ...shama,
yo he tumhara blog dekhane ko mila. achha likhati ho, khastur per tumhare vichar achhe hain. keep it up
roshanpremyogi.blogspot.com