700 करोड़ के पार्क के बजाय एक अदद बिजलीघर या कारखाना भी लगाया जा सकता था . पार्क से दलितों का भला होने से रहा .हाँ पार्क में घुमने से अभिजात्यपन महसूस किया जा सकता है . यह खुद को स्थापित करने की होड़ है या भावी पीढ़ी के प्रति अविश्वास या अपने किये गए कार्यों के प्रति संदेह ???
रविवार, 16 अक्टूबर 2011
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011
ग़रीब
दुनिया के मजदूरों एक हो कहने वाले
मार्क्स
अब तनी हुई मुट्ठियाँ ढूंढते रह जायेंगे
ये सरकार है भईया...
ये गरीबों को भी
अब अमीर कहलावायेंगे...
सरकार ने गरीबी की परिभाषा बदल डाली है
बत्तीस रूपये कमाने वाले की अब हर रोज दिवाली है
गरीबों की तकदीर एक दिन इतनी बदल जाएगी
सरकार इनका खाता स्विस बैंक में खुलवाएगी
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011
आम आदमी
दिख जाता है हर गली हर नुक्कड़ पर
चेहरे की बेबसी छुपाये ....
आम आदमी
कितना निरीह
जीवन के थपेड़े सहता हुआ
खुद को घसीटता
आम आदमी ...
ता-उम्र टूटता
जुड़ता हुआ .....
अदम्य जिजीविषा लिए
आम आदमी .
ता-उम्र टूटता
जुड़ता हुआ .....
अदम्य जिजीविषा लिए
आम आदमी .
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