- असम में ओरंग, मानस और काजीरंगा
- मध्य प्रदेश में कान्हा, पन्ना और सतपुड़ा
- महाराष्ट्र में पेंच
- बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व
- उत्तर प्रदेश में दुधवा
- पश्चिम बंगाल में सुंदरबन
- केरल में परम्बिकुलम
- कर्नाटक का बांदीपुर टाइगर रिजर्व
- तमिलनाडु में अन्नामलाई और मुदुमलाई टाइगर रिजर्व।
सहजै रहिबा
रविवार, 9 अप्रैल 2023
टाइगर प्रोजेक्ट
बुधवार, 6 अप्रैल 2022
समीक्षा- खोया हुआ आकाश
सोमवार, 13 सितंबर 2021
सोशल मीडिया के दौर में हिंदी
हिंदी दिवस पर अनेक सरकारी आयोजन किये जाते है। विद्यालयों में हिंदी को लेकर प्रतियोगिताएं होती हैं। कई बार यह सवाल मन में आता है कि आखिर इस दिवस की सार्थकता क्या है? सरकारी आयोजनों पर होने वाले भाषण , विद्यालयों में लेखन प्रतियोगिता महज औपचारिकता मात्र नहीं हैं। हिंदी पखवाड़ा घोषित कर कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली जाती है। हिंदी दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों की पहुँच सीमित होती है। वे ख़बर मात्र बनकर रह जाते हैं।
हिंदी से संबंधित हाल ही में एक ख़बर चर्चा में है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- बीएचयू हिंदी माध्यम में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरु करने जा रहा है। यह देश का पहला ऐसा संस्थान है , जो इंजीनियरिंग के छात्रों को हिंदी भाषा में पढ़ने का विकल्प देगा। वास्तव में ऐसे ही पहल की बहुसंख्यक हिंदी भाषी समाज को आवश्यकता है। उच्च शिक्षा में मातृभाषा में पठन-पाठन से उन विद्यार्थियों को लाभ होगा, जो योग्यता होते हुए भी अंग्रेजी भाषा में असहज होने के कारण वंचित रह जाते हैं।
सोशल मीडिया के इस प्रभावशाली दौर में हिंदी के वर्चस्व में बढ़ोतरी ही हुई है। आज के समय की बात करें तो सोशल मीडिया के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। हर न्यूज़ चैनल , पत्र-पत्रिकायें ऐप्प और वेब पोर्टल-यू ट्यूब के माध्यम से हर व्यक्ति को लक्ष्य किये हुए हैं। समाज के बदलते स्वरूप के साथ हिंदी भाषा का तादात्म्य उसे समृद्ध कर रहा है। ट्विटर के स्पेसेस और क्लब हाउस ने एक बड़ा मंच हिंदी भाषा को उपलब्ध कराया है। यह हिंदी भाषा की समृद्ध होती पहचान का प्रभाव है कि युवा होती पीढ़ी हिंदी में संवाद के लिए खुद को सहज पाती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जब कहा था 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल' तब हिंदी भाषा को स्थापित करने की बात थी। पर आज भी यह मूल मंत्र है। हिंदी वैश्विक पटल पर अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है। भाषा से लोक-संस्कृति का गहरा जुड़ाव होता है। ट्विटर पर डॉ सुरेश पंत हैं, जो हिंदी के शब्दों की उत्पत्ति ,उसका अर्थ से लेकर मुहावरों तक का विशद ज्ञान रखते हैं। वे शब्दों के शुद्ध और व्याकरणिक दृष्टि से सही प्रयोग पर बल देते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के इयान वुल्फोर्ड हिंदी के प्रोफेसर हैं, जो ट्विटर पर सक्रिय रुप से हिंदी भाषा में लिखते हैं और साहित्यिक चर्चाओं को विस्तार देते हैं। तमाम प्रशासनिक अधिकारी सोशल मीडिया पर हिंदी को अछूता नहीं मानते। ट्विटर पर कई सारे हैंडल हिंदी साहित्यकारों के नाम से न केवल चल रहे हैं बल्कि अच्छी संख्या में युवा वर्ग को आकर्षित कर रहे हैं। आधुनिक माने जाने वाले पटल पर हिंदी की यह उपस्थिति आशान्वित करती है।
भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रति विश्व भर में झुकाव है। विदेशी सैलानी यहाँ जीवन के गूढ़ दर्शन को समझने आते हैं। वे भी हिंदी के प्रचार- प्रसार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारतीय संस्कृति और लोक को उसकी भाषा के बिना नहीं समझा जा सकता है।
हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ रही है। भाषा जब शिक्षा, व्यापार और मनोरंजन तीनों क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम कर ले तो इससे भाषा की अन्तःशक्ति का पता चलता है। हिंदी भाषा उसी ओर अग्रसर है। अपनी आबादी के कारण भारत वैश्विक बाजार के लिए एक बड़ा ग्राहक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी विज्ञापनों के द्वारा उपभोक्ता को प्रभावित करने में लगी हैं। मोबाइल द्वारा हर घर, हर व्यक्ति तक बाज़ार की पहुंच है। हिंदी की बड़ी आबादी को लक्ष्य कर बाज़ार उन्हीं की भाषा और संस्कृति में खुद की प्रभावोत्पादकता स्थापित करने में लगा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां
अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए कहीं न कहीं हिंदी भाषा को मजबूत ही कर रही हैं।
आजकल बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं। एक सज्जन ने हिंदी कक्षा के संदर्भ में अपना अनुभव साझा किया। हिंदी की कक्षाओं में भी अंग्रेजी के माध्यम से संवाद किया जाये तो यह अनुचित होगा। स्कूलों को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि भाषा की कक्षा में उस भाषा का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। 'हिंदी हैं हम'.. यह बात भूलनी नहीं चाहिए। किसी देश की भाषा उसका आत्मसम्मान, उसका गौरव है। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में कई अखबारों ने अभियान चलाए हैं.. हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक वेबिनार आयोजित किए जा रहे हैं। आज के डिजिटल युग में कम्प्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रयोग एक बड़ी उपलब्धि है। इंटरनेट ने गाँव-कस्बों तक अपनी पकड़ बनाई है। हिंदी की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।
आवश्यकता है कि हिंदी दिवस मात्र औपचारिक आयोजन भर न रह जाये। इस दिन चाय-नाश्ता और गोष्ठियों से आगे बढ़कर हिंदी , शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमाये। जिस तरह की पहल आई.आई.टी. बीएचयू ने की है, वह अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए मानक साबित हो। शिक्षा और रोजगार की भाषा के रुप में भी हिंदी स्थापित हो। हिंदी भाषा में सबसे ज्यादा पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित होती हैं । वर्तमान परिदृश्य में हिंदी का प्रभाव आशान्वित करने वाला है। वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन 1960 में इस उद्देश्य के साथ किया गया था कि तकनीकी शब्दावली के लिए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में शब्द चयन किया जाये। समय के साथ इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जितना हिंदी का प्रयोग बढ़ता जाएगा ,उतना ही देश उन्नति की ओर अग्रसर होता जायेगा।
डॉ. क्षमा सिंह
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
सोशल मीडिया -अंधी दौड़
कहती है.. इतने सुंदर लोग आखिर इंस्टाग्राम पर आ कहाँ से रहे..? सप्लाई कहाँ से हो रही इनकी...।
टिक-टॉक बैन हुआ तो लगा थोड़ी राहत हो गयी। फेसबुक पर वीडियो का ऑप्शन है.. जिस तरह के वीडियो वहाँ देखने को उपलब्ध हैं..
पॉर्न देखने के लिए कुछ तलाशने की जरुरत ही नहीं है। पहले सिर्फ पोस्ट तक सीमित फेसबुक ने सारा दिन दिल,दिमाग को बंधक बनाए रखने के लिए वीडियो का विकल्प भी डाल दिया है।
रील्स की चकाचौंध में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। रील्स बनाने वाले को फिर भी पैसे मिल रहे.. देखने वाला सारा दिन चाहे तो बैठ कर देखता रह जाये।
इन सबमें ट्विटर फिर भी बेहतर है। जहाँ खबरों और सूचनाओं का आदान-प्रदान सहजता से किया जाता है। विचारों का त्वरित प्रसारण और अब तो स्पेसेस ने ट्विटर को संवाद का मुख्य जरिया बना दिया है।
मंगलवार, 15 जून 2021
चिराग तले अँधेरा
उधर बसपा से भी टूट की खबर आ रही है। हाल की खबरों से पता चलता है कि प्रवासी बनकर आये कुछ भाजपा विधायक टीएमसी में लौट जाने को आतुर हैं।
सत्ता से दूरी पार्टियों में बिखराव का कारण है। मौकापरस्त लोग सत्ता सम्पन्न होने को अधीर हैं।
गुरुवार, 25 मार्च 2021
धर्म / लोक
‘ इनसाइड हिंदू मॉल ‘ यह किताब अभिजीत सिंह द्वारा लिखी है। ‘ हिंदी में लिखी किताब का यह नाम क्यों ‘.. यह सवाल मन में आता है । जैसा कि किताब के शुरुआती लेखों से ही स्पष्ट है , यह युवा वर्ग को संबोधित है। आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में ‘मॉल संस्कृति’ इतनी प्रविष्ट हो चुकी है कि लेखन इससे कैसे अछूता रह सकता है। युवाओं के मन में हिंदू धर्म को लेकर अनेक सवाल उठते रहते हैं। हिंदू धर्म के प्रति भ्रामकता बढ़ती जा रही है। युवा पीढ़ी ज्वालामुखी के उस मुहाने की ओर बढ़ रही है , जहाँ एक दिन सब भस्म हो जाना है। ऐसे समय में अभिजीत की यह किताब ‘लाइटहाउस’ बनकर युवाओं का मार्ग प्रशस्त करेगी।
‘ हिंदू होना क्या है ‘…यह मूल प्रश्न है । हिंदू धर्म के सकारात्मक पक्ष को लेखक ने प्रभावशाली ढंग से वर्णित किया है। इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये ‘समभाव’ की प्रकृति को बल देती है। भारत बहुधर्मी देश है। दूसरे के बल पर श्रेष्ठता का भाव घातक है। इस किताब में यह दर्शाया गया है कि हिंदू धर्म सबको साथ लेकर चलता है। यह बाँधता नहीं बल्कि मुक्ताकाश की अवधारणा रोपित करता है। लेखक पूर्व की कुछ घटनाओं का ज़िक्र करता है। वो बामियान की घटना हो या जैन धर्म को अल्पसंख्यक बनाये जाने की , ये संवेदनशील हिंदू को पीड़ा देने वाली बात है। लेखक की संवेदना अपने पूर्वजों द्वारा रोपित वृक्ष की शाखाओं को कमजोर होते देख आहत है। सम्भवतया इस किताब की प्रेरणा इन्हीं घटनाओं के बीच से मिली हो।
हिंदू धर्म ‘प्रकृतिपूजक’ रहा है। वृक्ष, नदियाँ, पशु-पक्षी सभी इसके अंग हैं। भारतीय चिंतन परंपरा के द्वार सभी के लिए खुले हैं। जिसकी भी ‘लोक’ में गहरी आस्था होगी , वह हिंदू धर्म का संवाहक होगा। अभिजीत लिखते हैं कि शिखा या जनेऊ धारण कर लेना भर धर्म नहीं है। वे उन्हीं लोक से जुड़ी बातों की चर्चा बार-बार करते हैं , जो हमें अनुवांशिक रुप में पीढियों से प्राप्त है। वे विचार हमारे रक्त प्रवाह में है। जड़ और चेतन के प्रति जो स्नेह भाव है ,वही धर्म है। हिंदू धर्म उदारमना है। यही उसकी प्रासंगिकता का मुख्य कारण है।
‘इनसाइड हिंदू मॉल’ उन छद्म प्रगतिशीलों को जवाब है जिन्हें हिंदू धर्म की प्रगतिशीलता नहीं दिखती। लेखक के पास लोक से जुड़ी अनेक कथायें हैं। इन कथाओं को सबने सुन रखा होगा , पर इनसे ‘क्या ग्रहण करना है’ यह इस पुस्तक का से पता चलता है। ‘सहजता’ ही इस किताब की ‘विशिष्टता’ है।
शुरुआत के कुछ लेखों को एक ही शीर्षक के अंर्तगत रखा जा सकता था। यह किताब युवा पाठकों के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। यह किताब ऐसे समय में आयी है जब धर्म को युवाओं के समक्ष ‘संवाद’ की तरह प्रस्तुत किये जाने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है।
शनिवार, 17 अक्तूबर 2020
लाल सूरज
1-
वे ..
तुम्हारी तरह फेमिनिस्ट नहीं थीं
और
न ही उन्होंने उगा रखा था
माथे पर लाल बिंदी का सूरज
वे तो स्वयं दीपित थीं..
अपने कर्तव्य से ..
उन्होंने उठा रखी थी ढाल
अपने धर्म पर पड़ने वाले हर प्रहार को
विनष्ट करते हुई..
वे राह दिखा रहीं थीं।
आने वाले समय में जब कोई पूछे सवाल
कि स्त्री समाज में 'चैतन्यता कहाँ थी'
तब वे प्रतिउत्तर में
अपनी तलवार के साथ
खड़ी दिखाई दें ..
2-
जब कोई पूछे कि
इतिहास के पन्नों में
'कहाँ है तुम्हारी शौर्य कथा'
वे ..
अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
खड़ी दिखाई दें..
उन षड़यंत्रों के खिलाफ
जो अनवरत रची जा रही
सृष्टि के उस संयमशील धर्म को
अभिमन्यु की तरह घेर कर..
परास्त करने में...
अंकित हैं वे सब स्त्रियाँ
आकाश के पटल पर..
अंकित है उनका इतिहास
तुम्हारे काले शब्दों के अंतराल में..
(उन चेतना सम्पन्न वीरांगनाओं के लिए , जिनके ओज, औदार्य की गाथा लिखने का साहस कम ही जुटा पाए इतिहासकार)
बुधवार, 12 अगस्त 2020
बिसात पर मात
यह राजनीति की बिसात पर शह और मात का खेल है। राजस्थान में ऊपर-ऊपर भले ही सब सेट नज़र आ रहा हो, अन्दर खाने में खेल खत्म नहीं हुआ। फिलहाल अशोक गहलोत भारी हैं सचिन पायलट पर। पार्टी की सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सचिन के पक्ष में फैसला दिया हो पर कद तो अशोक गहलोत का बड़ा दिख रहा। सचिन ने बड़ी चूक कर दी। जो फैसला लिया, वे उस पर टिके नहीं रह पाए। यह सामान्य नियम है कि उचित या अनुचित जब एकबार कदम आगे बढ़ा दिया तो वापसी नहीं करनी थी। लेकिन अनुभव की कमी और पर्याप्त मैनेजमेंट न होने के कारण उन्हें वापसी को बाध्य होना पड़ा। राजनीतिक महत्वाकांक्षा होना गलत नहीं । लेकिन गलत समय पर लिया गया निर्णय व्यक्ति के भविष्य को जरुर प्रभावित करता है। इस निर्णय के भी दूरगामी परिणाम नज़र आ रहे।
विद्रोह की शुरुआत में सचिन मजबूत नज़र आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि सचिन पायलट गहरा असर छोड़ सकते हैं । लेकिन अशोक गहलोत समय रहते स्थिति संभालने में सफल हुए।
अपने मास्टरस्ट्रोक में असफल सचिन के पास वापसी के अलावा कोई रास्ता न था। अपने 18 सहयोगियों के साथ वे उस रास्ते चल पड़े , जिसकी मंजिल खुद उन्होंने भी निश्चित नहीं की थी। राजनीति में यह इमेच्योर निर्णय उनकी खुद की छवि को डेंट लगा गया।
राजस्थान में जमीनी मेहनत कर सत्ता वापसी का सिरमौर सचिन ने खुद के सिर पर सजते देखा। पर अशोक गहलोत ने केंद्रीय नेतृत्व को पहले ही अपने पक्ष में आश्वस्त कर रखा था। यह राजस्थान राजनीतिक संकट की बड़ी वजह बना। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर जिस तरह व्यक्तिगत आक्षेप लगाए , उससे उनके मंशा जाहिर होती है। 'फॉरगेटएंड फॉरगिव' ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं।
गुरुवार, 30 अप्रैल 2020
कोविड-19 ने विश्व के शक्तिशाली और सुविधा सम्पन्न देशों को हताश और मजबूर कर दिया है।एक ओर जहाँ कोविड-19 दुनियाभर में अपना प्रकोप दिखा रहा है, वहीं भारत सरकार ने अपनी अग्रिम तैयारी कर रखी है। जो देश समय रहते चौकन्ने हो गए उनमें कम नुकसान की संभावना है। अंदाजा भी नहीं कि इस वायरस ने कितनी खामोशी से विश्व में पांव पसार लिए हैं। हम भौतिकता की अंधी दौड़ में भागे जा रहे थे। जीवन का बहुत कुछ पैसा कमाने की रेस में छूट रहा था। समय का इतना अभाव की खाने तक का वक़्त नहीं.. और आज लगता है प्रकृति ने ‘यू-टर्न’ ले लिया है। जैसे एक छोटे से वायरस ने जीवन का सार समझा दिया हो। निश्छल प्रकृति अपने दोहन से रुष्ट हो गयी हो.. पृथ्वी ,आकाश, वायु सब कह रहे हों कि अपनी सीमा तय करो। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जीवन इस तरह रुक जाएगा।
वैज्ञानिक प्रगति देश और समाज के लिए चाहे जितना जरूरी हो.. प्रकृति के लिए हमेशा नुकसानदायक रहा है। मानव और प्रकृति के सहसम्बन्धो को फिर से समीक्षा की आवश्यकता है।
कोविड-19 ने एक नए विमर्श को भी जन्म दिया कि ‘धर्म छुट्टी पर है और विज्ञान ड्यूटी पर है।’ क्या वाकई ऐसा है...नहीं। यह लोकधर्म ही है जो सामुहिक चेतना के रुप में निर्बलों का सहारा बन के खड़ा है। लोग स्वतः ही गरीबों तक खाना पहुंचा रहे हैं। जो राज्य सरकारें राशन उपलब्ध कराने का दावा कर रहीं ,यह उनका दायित्व है। पर जनता का धर्म है कि वह घर रहकर वायरस के संक्रमण को रोके। विज्ञान यदि ड्यूटी पर है तो यह भी एक तरह का धर्म ही है। स्टीफन हॉकिंग ने कहा है-‘science will win because it works’ तो क्या धर्म काम नहीं कर रहा। यह वायरस इंसानों के लिए चुनौती है। निःसंदेह विज्ञान इस चुनौती को हल कर रहा। धर्म और विज्ञान में हार-जीत का मामला नहीं। दोनों ही मानव के हित और मानवता के पक्ष में खड़े हैं। डॉक्टर अपने जीवन को खतरे में डालकर भी सेवा कर रहे ये उनका धर्म है। सफाईकर्मी अपना धर्म निभा रहे। सोशल मीडिया पर घर के बाहर बैठकर खाना खाते पुलिस वालों की फोटो वायरल हो रही..क्या वो अपना धर्म नहीं निभा रहे।
संकट के क्षण में कई बार जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। कोरोना संकट के बाद जीवन पहले जैसा शायद न रह पाए। विश्व के स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर नज़र बनाये हैं कि भारत जैसी घनी आबादी किस तरह इस संक्रमण से खुद को बचा पाएगी। जबकि अमेरिका जैसे सुविधा सम्पन्न राष्ट्र ने इस वायरस के आगे हाथ खड़े कर दिए हैं । चिंता की बात है कि अगर कोविड-19 ने भारत में पाँव पसारे तो अपनी कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बल पर खुद को संक्रमण से रोक पाना बहुत मुश्किल होगा। सोशल डिस्टेंसिंग भले ही लागू हो पर सामूहिकता की भावना नये सिरे से समाज में अपना स्थान बना रही है। कोरोना रोगी के ठीक होकर लौट आने के बाद उसके साथ मानवीय ढंग से पेश आना सभ्य समाज की जिम्मेदारी है। घरों में कैद लोग आशान्वित हैं कि जल्द ही कोरोना संकट से मुक्ति की राह मिलेगी। इस आपदा के समय खुद को सकारात्मक और संवेदनशील बनाये रखने की आवश्यकता है।
बुधवार, 10 अप्रैल 2019
उम्मीद है भारत का भविष्य उज्जवल होगा। उम्मीद है...जनता सही फैसला करेगी।