शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

लाल सूरज

1-

वे ..

तुम्हारी तरह फेमिनिस्ट नहीं थीं

और 

न ही उन्होंने उगा रखा था 

माथे पर लाल बिंदी का सूरज

वे तो स्वयं दीपित थीं..

अपने कर्तव्य से ..

उन्होंने उठा रखी थी ढाल 

अपने धर्म पर पड़ने वाले हर प्रहार को 

विनष्ट करते हुई..

वे  राह दिखा रहीं थीं।

आने वाले समय में जब कोई पूछे सवाल 

कि स्त्री समाज में 'चैतन्यता कहाँ थी'

तब वे प्रतिउत्तर में 

अपनी तलवार के साथ 

खड़ी दिखाई दें ..

2-

जब कोई पूछे कि

इतिहास के पन्नों में

'कहाँ है तुम्हारी शौर्य कथा'

वे ..

अपनी पूरी ऊर्जा के साथ

खड़ी दिखाई दें..

उन षड़यंत्रों के खिलाफ

जो अनवरत रची जा रही

सृष्टि के उस संयमशील धर्म को

अभिमन्यु की तरह घेर कर..

परास्त करने में...

अंकित हैं वे सब स्त्रियाँ
आकाश के पटल पर..
अंकित है उनका इतिहास
तुम्हारे काले शब्दों के अंतराल में..

(उन चेतना सम्पन्न वीरांगनाओं के लिए , जिनके ज, औदार्य की गाथा लिखने का साहस कम ही जुटा पाए इतिहासकार)

कोई टिप्पणी नहीं: