रविवार, 29 सितंबर 2013

एक दो तीन चार करके
वे सत्ता की सीढियाँ
 चमकाने में ..
चढ़ा दिए गए सूली पर
और जो बाकी बचे हैं
वे जूते चमकाने में लगे  हैं .

कुर्सियाँ फिर उठ खड़ी होंगी
किसान ,जवान और जनता की शान में
चुनाव तक सट्टा बाज़ार जगमगाएगा

 लोग फिर हरहरायेंगे गेहूं की बाली की तरह
फसल कटने तक उत्सव चलता रहेगा 
लोकतंत्र के प्रहरी  अपने महलों को लौट जायेंगे

देखते-देखते लोकतंत्र शब्दों तक सिमट जायेगा .
जो हो रहा था ,वही आगे भी दोहराया जायेगा

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

६५ सालों से चल रहे इस खेल को रोकने कोई तो आएगा ... कहीं इंतज़ार लंबा न हो जाए ...